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चक्षुष्मान् !
निर्मलता जीवन की महान् उपलब्धि है। मन का चंचल होना समस्या है । उससे बड़ी समस्या है मन की मलिनता। क्रोध मन को मलिन बनाता है, यह कहना उचित होगा अथवा मन मलिन हो तब क्रोध पैदा होता है । ये दोनों उक्तियां सच हैं।
मलिन मन का आर और पार-दोनों स्वच्छ नहीं होते। अस्वच्छ मन का अर्थ है मानसिक तनाव ।
तनाव से बचना चाहते हो तो सर्वांग आसन का प्रयोग करो। भुजंगासन का अभ्यास करो और उसके प्रतिपक्ष में मत्स्यासन का प्रयोग । थायराइड ग्रन्थि का व्यायाम होगा, तनाव मिटेगा, मन की मलिनता में कमी आएगी।
कण्ठ और मन के संबंध का अध्ययन करो । मन का संबंध चन्द्रमा से है । चन्द्रमा का प्रभाव-क्षेत्र है कण्ठ । कण्ठ के मध्य भाग में है विशुद्धि केन्द्र । इस चैतन्य केन्द्र पर ध्यान कगे, इससे चयापचय की क्रिया ही संतुलित नहीं होगी, वासनाओं और वृत्तियों का भी परिष्कार होगा।
बहुत आवश्यक है परिष्कार । वासनाओं के उन्मूलन की बात सोचना बहुत अच्छी बात है पर सहसा संभव नहीं है । संभव है परिष्कार ।
जो संभव है, उसकी साधना प्रारम्भ करो। गर्म खिचड़ी के बीच में हाथ मत डालो। उसे किनारे से खाना शुरू करो।
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