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अध्यात्म की वर्णमाला
हम क्या-क्या करें ? इतने प्रयोग क्यों करें ? एक उलझन-सी बनी रहती है । वास्तव में यह उलझन नहीं है । यह यथार्थ का अनुगमन
हमारे शरीर में शक्ति के अनेक केन्द्र हैं । चेतना और आनन्द के भी केन्द्र अनेक हैं । वे सब केन्द्र एक ही उपाय से जागत नहीं होते । उनके जागरण के पृथक्-पृथक् सूत्र हैं । यथासमय यथाविधि उन सबका आलम्बन आवश्यक है। उन सब आलम्बनों में एक सर्वसाधारण आलम्बन है श्वास का संयम । प्रारम्भ में इसका आलम्बन लो, धीरेधीरे यह आलम्बन स्वयं निरालम्ब में बदल जाएगा।
निरालम्ब ध्यान, निविचार ध्यान और श्वास संयम-तीनों को एक ही भाषा में अभिव्यक्त किया जा सकता है-नाम अनेक तात्पर्य एक । श्वास प्रवृत्ति का हेतु है और निवृत्ति का हेतु है श्वाससंयम । जीवन-चक्र को केवल प्रवृत्ति से मत चलाओ । उसे निवृत्ति का सहारा भी दो । यह प्रवृत्ति और निवृत्ति का समन्वय एक नई दिशा का उद्घाटन करेगा।
जयपुर १ अप्रेल, १९९१
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