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अध्यात्म की वर्णमाला
को पूर्ण नहीं बनाता। क्रिया और मन-दोनों का योग आवश्यक है। समवृत्ति श्वास प्रेक्षा का प्रयोग-दोनों के समन्वय का प्रयोग है।
तुम मन की एकाग्रता के लिए इसका अभ्यास बार-बार करो। यह एकाग्रता की आनुपूर्वी है। नमस्कार महामंत्र के जप के लिए आनुपूर्वी का प्रयोग किया जाता है। उसमें मन की एकाग्रता सधती है । ठीक वैसे ही समवृत्ति श्वास प्रेक्षा में मन एकाग्र होता है ।
शारीरिक दृष्टि से भी इसका बहुत मूल्य है । दायां स्वर गर्म होता है, बायां स्वर ठंडा होता है। उष्णता और शीतलता-दोनों सन्तुलित रहे, यह स्वास्थ्य की अपेक्षा है। इसकी पूर्ति समवृत्ति श्वास प्रेक्षा से होती है।
हठयोग में जो अनुलोम-विलोम प्राणायाम है, समवृत्ति श्वास प्रेक्षा उससे जुड़ी हुई है । अनुलोम-विलोम केवल प्राणायाम है । उसकी प्रेक्षा करो, उसे देखो, उसकी गति पर ध्यान केंद्रित करो, वह ध्यान का प्रयोग बन जाएगा। समवृत्ति श्वास प्रेक्षा कोरा प्राणायाम नहीं, ध्यान का प्रयोग है।
आमेट
१ मार्च, १९९१
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