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लाख वायुकाय, दस लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय, चौदह लाख साधारण वनस्पतिकाय, दो लाख द्वीन्द्रिय, दो लाख त्रीन्द्रिय, दो लाख चतुरिन्द्रिय, चार लाख नारकी, चार लाख देवता, चार लाख तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय, चौदह लाख मनुष्य की जाति-चार गति चौरासी लाख जीव-योनि पर राग-द्वेष आया हो तो 'तस्स मिच्छामि दक्कडं'।
'पांचवां आवश्यक' 'मत्थएण वंदामि' पांचवे कायोत्सर्ग आवश्यक की आज्ञा।
इच्छामि ठाइउं काउस्सग्गं जो मे देवसिओ अइयारो कओ काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुविचिंतिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो णाणे तह दंसणे चरित्ते समणाणं जोगाणं जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छामि दुक्कडं।।
तस्स उत्तरीकरणेणं. । (ध्यान लोगस्स. णमुक्कार सुत्तं-ध्यान सम्पन्न)
छट्ठा आवश्यक
मत्थएण वंदामि छटे प्रत्याख्यान आवश्यक की आज्ञा। 'अईअं पडिक्कमामि पड़प्पन्नं संवरेमि अणागयं पच्चक्खामि।
सामायिक, चउवीसत्थव, वंदना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान-इन छहों आवश्यकों में जागरूकता न रखी हो, उच्चारण में न्यूनाधिकता की हो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
(दो बार नमोत्थु णं का पाठ बोलें।)
पहला णमोत्थु णं सिद्ध भगवान को, दूसरा णमोत्थु णं अरहन्त भगवान को तीसरा णमोत्थु णं मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स थवत्थुई मंगलं श्री श्री श्री श्री १००८ श्री श्री श्री गणाधिपति पूज्यगुरुदेव श्री तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ को। (पांच बार नमस्कार मंत्र पढ़ें) पंचपद वंदना
गुरु वंदना।
१. लोगस्स का- दैवसिक और रात्रिक प्रतिक्रमण में ४, पाक्षिक में १२, चातुर्मासिक में २०,
सांवत्सरिक में ४० का ध्यान करें। २. दैवसिक और रात्रिक एक दिन के लिए, पाक्षिक-१५ दिन, चातुर्मासिक चार महीने एवं
सांवत्सरिक --एक साल के लिए कोई प्रत्याख्यान अवश्य करें। ३. दूसरे नमोत्थु में ठाणं संपताणं के स्थान पर 'ठाणं संपाविउकामाणं' ऐसा कहें।
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