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५४ समण दीक्षा : एक परिचय
उपकरण-विवेक के अतिचार* उपकरणों के प्रयोग में सावधानी न बरती हो।
तस्स" उत्सर्ग-विवेक के अतिचार
* उत्सर्ग के वेग को धारण किया हो। * उत्सर्ग के उपयुक्त स्थान की गवेषणा न की हो। * स्वच्छता का ध्यान न रखा हो।
तस्स"
आगमे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा-सुत्तागमे, अत्थागमे, तदुभयागमे एअस्स सिरि-णाणस्स जो मे देवसिओ अइयारो कओ तं आलोएमि।
जं वाइद्धं, वच्चामेलियं, हीणक्खरं, अच्चक्खरं, पयहीणं, विणयहीणं, घोसहीणं, जोगहीणं, सुट्ठदिण्णं दुद्रुपडिच्छियं, अकाले कओ सज्झाओ, काले न कओ सज्झाओ, असज्झाइए सज्झाइयं, सज्झाइए न सज्झाइयं, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं। श्रुत सामायिक के अतिचार
* उच्चारण में मात्रा, वर्ण या पद का विपर्यय या मिश्रण किया हो। * उच्चारण में मात्रा, वर्ण या पद की न्यूनाधिकता की हो। * स्वाध्याय-काल में स्वाध्याय न किया हो, अस्वाध्याय में स्वाध्याय
किया हो। * उच्चारण में अति त्वरा या विलम्ब किया हो।
तस्स" दर्शन-सामायिक के अतिचार
अरहंतो मह देवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो।
जिणपण्णत्तं तत्तं, इय सम्मत्तं मए गहियं॥ एअस्स पंच अइयारा पेयाला जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा-संका कंखा वितिगिच्छा परपासंडपसंसा परपासंडसंथव जो मे देवसिओ अझ्यारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
* साध्य, साधन और साधना के प्रति शंका, कांक्षा, विचिकित्सा की हो। * विपरीत दिशागामी व्यक्ति या विचार का समर्थन या परिचय किया हो। तस्स"
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