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________________ आशीर्वचन युग परिवर्तनशील होता है। युग बदलता है उसके साथ कुछ आदमी बदले और संघ भी विवेकपूर्वक कुछ बदलाव लाये। जैन शासन में आचार्य, बहुश्रुती जो निरपेक्ष और मध्यस्थभाव से साधना करते हैं संघ की संभाल करते हैं उनको अधिकार दिया गया है कि समय-समय पर मौलिकता की सुरक्षा करते हुए आवश्यक परिवर्तन भी करे। इसी बात को सामने रखकर तेरापंथ ने एक नई श्रेणी का निर्माण किया उसका नाम है-समण श्रेणी। इस श्रेणी के सदस्य गृहत्यागी होते हैं। और एक तरह का नया संन्यास उनका होता है। कुछेक अपवादों के सिवाय उनकी चर्या साधु जैसी होती है। आज यह श्रेणी समाज के लिए बहुत उपयोगी साबित हो गई है। इसको प्रारम्भ करने में जितनी कठिनाई आयी आज उसकी उतनी ही प्रशस्ति हो रही है। उस श्रेणी के वारे में समाज को जनता को कुछ जानकारी मिले इसलिए एक छोटी पुस्तिका प्रकाशित हो रही है। आशा है जनता इससे लाभान्वित होगी। १५-४.६६ गणाधिपति तुलसी “अभ्युदय" जैन विश्व भारती, लाडनूं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003166
Book TitleSaman Diksha Ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanmatishree Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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