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________________ साधना तेरापंथ में समणश्रेणी का उद्भव किसी विशेष लक्ष्यपूर्ति के लिए हुआ है। इसका लक्ष्य मुख्यतः तीन करणीय कार्यों के साथ स्पष्ट होता है-साधना, शिक्षा और प्रचार-प्रसार । शिक्षा और प्रचार-प्रसार के कार्य को कुशलतापूर्वक सम्पादित करने के लिए जीवन को विभिन्न प्रयोगों से साध लेना आवश्यक है। साधना आत्म-मर्यादा है। इसे स्वीकार कर चलने वाला व्यक्ति स्वीकृत संकल्पों की गहराई में उतर सकता है, उनकी ऊंचाई को छू सकता है। इमारत की ऊंचाई के लिए गहरी और मजबूत नींव की आवश्यकता है। जितनी गहरी नींव, उतनी ऊंची इमारत और जितनी ऊंची इमारत उतना जनाकर्षण का वह केन्द्र भी। साधना की गहराई भी व्यक्तित्व को ऊंचाई प्रदान करती है और वह ऊंचाई जीवन को सार्थक करने में सफल होती है। तेरापंथ एक प्रयोगशाला है। इसमें समय-समय पर नित नये साधना के प्रयोग होते रहते हैं। इतिहास बताता है आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु कई बार आहार लेकर गांव के बाहर चले जाते। वृक्ष की छांव में पात्र रखकर स्वयं तपती रेत में घण्टों-घण्टों आतापना लेते। आतापना लेना कठोर साधना का एक प्रकार है। ऐसे एक नहीं, अनेक उदाहरण तेरापंथ इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में लिखे हुए हैं। इस शासन-समुद्र में ऐसे-ऐसे रत्न हुए है और हैं, जिन्होंने अपनी साधना से अपने को, तथा संघ को मजबूती दी है। समण श्रेणी के सामने साधना का विस्तृत क्षेत्र है। साधना की प्राचीन पद्धतियों के साथ-साथ आधुनिक ध्यान योग के प्रशिक्षण व प्रयोगों का भी उनके लिए अवकाश है। गुरुदेव श्री तुलसी तथा आचार्य श्री महाप्रज्ञ द्वारा निर्दिष्ट एवं निर्धारित विविध प्रकार के प्रयोगों से अपने आपको भावित करती हुई यह श्रेणी अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003166
Book TitleSaman Diksha Ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanmatishree Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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