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________________ ४८ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म लिखा है कि यह कैलाश पर्वत हिमालय में है। जहाँ से गंगा पाती है और भगवान शिव या शंकर कलाशपति के स्थान की जगह है, जिसका पूरा पता नहीं लग सका। जैन ग्रंथों में इस पर्वत का स्थान अयोध्या की उत्तर दिशा में है जिसको हिम-प्रदेश बतलाया गया है। जैन ग्रंथों में इस पर्वत का नाम अष्टापद तीर्थ कहा गया है। मुनि श्री जयन्तविजय जी ने भी अपने एक गजारती ग्रंथ में, जिसका नाम “पूर्व भारत नी जैन तीर्थ भूमियो" है बतलाया है कि प्राचीन जैन ग्रंथों में कैलाश के नाम से अष्टापद तीर्थ है। __अब इस पर्वत की खोज करने वाली पार्टी ने पता लगाया है कि यह पर्वत हिमालय के बीच शिखरमाला में स्थित है। उत्तर भारत के अलमोड़ा शहर से यह लगभग २५० मील दूर तिब्बत प्रदेश में है। भारत की सीमा इस पर्वत से लगभग ४०-४५ मील पर है। यह पर्वत प्राकृतिक नहीं है बल्कि किसी ने इसे काट कर तराश करके बनाया है-ऐसा मालूम पड़ता है। प्राकृतिक पर्वत उतराई-चढ़ाई व ढलानों वाले होते हैं। जिनमें कुदर्ती लहरें आदि होती हैं । लेकिन यह पर्वत ऐसा नहीं है। अपनी शृखला में सबसे ऊंचा है । यह कैलाश पर्वत दूर से देखने पर चारों दिशाओं से एक जैसा ही दिखाई देता है। इसके चारों ओर खंदक है। पर्वत नीचे की तरफ़ चारों ओर की गोलाई में चौकोना सा और ऊपर का भाग गोल है। इस पर्वत की चोटी निचले भाग से चार, पांच हजार फुट ऊंची होगी। समुद्र तल से ऊंचाई २३ हजार फुट है। इस पर्वत की बना ट ऐसी लगती है जैसे समोसरण की रचना की हुई होती है। चारों ओर की खंदक में चौबीसों घटे रुई की तरह बरफ़ गिरती रहती है । पर्वत चारों ओर बरफ से ढका हुआ है। पहाड़ों पर चढ़ने वाले लोग इसके नज़दीक नहीं जा सकते । जो जाते हैं उन्हें चार मील दूर रुककर ही इस दृश्य को देखना पड़ता है। चढ़ना अत्यन्त कठिन है क्योंकि चोटी गोल गुम्बद के समान है और हिमाच्छादित है। शिखर के बीचोबीच कलश के समान बरफ़ में ढका हुया टीला सा दिखलाई देता है और अधिक ऊंचाई पर सुन हरी चमक-सी भी दिखलाई देती है। इसकी परिक्रमा ४० मील घेरे की है। इस पर्वत को कोई कैलाश या शंकर जी का स्थान कहते हैं। तिब्बती लोग इसे काँगरिक पौच या बुद्ध का निर्वाण स्थान कहते हैं। इस पर्वत की दक्षिण दिशा में सोना व उत्तर दिशा में चांदी की खाने हैं। गर्म पानी के झरने भी काफ़ी हैं। अलमोड़ा से पैदल चलना पड़ता है। पहुंचने में २५ दिन लगते हैं। इस पर्वत के २० मील दक्षिण में मानसरोवर झील है। इस झील की लम्बाई व चौड़ाई २०-२० मील है। थोड़ी ही दूरी पर "रक्ष" झील है जो उत्तर-दक्षिण २० मील व पूर्व-पश्चिम ६--७ मील है । मानसरोवर का पानी बहुत ही निर्मल है तथा ४०० फुट गहरा है । जब हवानों की गति मध्यम होती है तथा लहरें उठनी बन्द हो जाती हैं तब झील के पानी में नीचे की जमीन का भाग दिखाई देता हैं। इस झील पर हंस आदि पक्षी काफ़ी संख्या में आते जाते रहते हैं। यहां जैन मुनि स्वामी प्रणवानन्द दो-दो साल तक रहकर आए थे, और उन्होंने अपनी पुस्तक “कैलाश एण्ड मानसरोवर" पृष्ठ १० पर इसका महात्म्य लिखा है। उसमें अष्टापद यानि कैलाश का फोटो भी साथ में दिखाया गया है। ___ कैलाश (अष्टापद) पर्वत तिब्बत की पहाड़ियों पर स्थित है। इस लिए लिंगपूजा का शब्द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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