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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म करते । सुबह शाम अपने बच्चों को धर्माक्षर प्रथवा धार्मिक स्वाध्याय कराते हैं । तपस्या में व्रत, प्रायंबिल; एकासना आदि तो करते ही रहते हैं । इसके अलावा पर्यंषण पर्व में पांच बार लगातार मठाई तपस्या कर चुके हैं । देव, गुरु, धर्म में पूर्ण श्रद्धा वा आस्था रखते हैं । ५८२ कहा जाता है कि संतान पर माता-पिता आदि बुजुर्गों का संस्कार ही ज्यादा प्रभाव डालता है - इस उक्ति के अनुसार आपके चरित्र में तो यह कहावत पूरी तरह सही बैठी ही है बल्कि प्रापके नन्हे-मुन्हे बच्चों पर भी यह उक्ति सही बैठती है । आपके बच्चे भी नित्य प्रति आरती, पाठ धर्माराधना आदि करते हैं। जिन दर्शन किये बगैर अन्न जल ग्रहण नहीं करते । विशेष बात तो यह है कि आपके पुत्र पवनजैन ने ५ वर्ष की अल्पायु से लोगस्स, उवसग्गहरं, लघुशाँति सीखते हुए प्राज ८ वर्ष की अवस्था में ही वृहच्छांति, भक्तामर, कल्याणमंदिर आदि महास्तोत्र शुद्ध रूप में कंठस्थ कर लिए हैं और आत्मानंद जैनसभा देहली द्वारा आयोजित वार्षिक बाल प्रतियोगिता में (पर्युषण पर्व के दिनों में ) लगातार तीन साल सर्वप्रथम रहकर चल वैजयंती ( सिल्वर ट्राफी ) विजेता बनने का सौभाग्य प्राप्त किया है । -0 युवा स्क्वाड्रन लीडर श्री एम. के. जैन श्री महेन्द्रकुमार जैन जालंधर श्रीसंघ के प्रतिष्ठित कार्यकर्ता ला० कपूरचंद जैन के होनहार पुत्र थे । उनका जन्म १९३७ ई० में हुआ । कालेज में कुछ वर्ष शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् 'वायु सेना में भर्ती हो गये । अपनी योग्यता, प्रतिभा, साहस और कार्य कुशलता के बल पर थोड़े समय में ही श्रीजैन स्क्वाड्रन लीडर के पद पर आसीन हुए । देशभक्ति के सुसंस्कार इन्हें अपने पूज्य पिता श्री कपूरचंदजी से उत्तराधिकार में प्राप्त हुए । श्री कपूरचंदजी अंग्रेजी साम्राज्य से टक्कर लेने वाले एक कर्मठ कांग्रेसी रहे जो जालंधर काँग्रेस कमेटी के मंत्री भी रहे तथा महात्मा गाँधी के ग्राह्वान पर जेल भी गये । उनमें आज भी देश और सामाज सेवा की लगन है । Jain Education International श्री महेन्द्र जैन ने १९६५ के भारत-पाक युद्ध में भी अपूर्व शौर्य का प्रदर्शन किया । १९७१ में छंब-जोड़ियाँ के मोर्चे पर शत्रुनों के दांत खट्टे करते हुए उन्होंने वीरगति प्राप्त की । उनकी शूरवीरता और देशप्रेम के उपलक्ष में भारत सरकार ने मरणोपरांत वीरचक्र प्रदान किया । यह जैन समाज के लिए गौरवपूर्ण अध्याय है । जिसे उनकी विधवा श्रीमती कमलेश जैन ने प्राप्त किया । श्री महेन्द्र जैन की तीन मासूम लड़कियाँ हैं । इस युवा स्कवाड्रन लीडर का बलिदान स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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