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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
श्री प्यारेलालजी (रायसाहब) ___ोसवाल बरड़ गोत्रीय लाला गणेशदास की धर्मपत्नी धनदेवीजी की कुक्षी से ई० स० १६०१ में श्री प्यारालाल का गुजरांवाला (पंजाब) में जन्म हुआ । आपकी १४ वर्ष की आयु में लाला गणेशदासजी का स्वर्गवास हो जाने से सारा बोझ आपके कन्धों पर आ गया। इस समय परिवार में प्रापसे छोटे चार भाई तथा बहनें भी थीं । भरे पूरे परिवार के पालन-पोषण तथा व्यवसाय को सुचारु रूप से चलाने की सारी जिम्मेदारी आपने संभाल ली। कपड़े के व्यापार में अपनी सूझ-बूझ से आपने दिन दुगनी रात चौगनी तरक्की की और लाखोंपति बने। ई० सं० १९४७
में पाकिस्तान बनने पर आप अपने सारे परिवार के साथ अम्बाला शहर पंजाब में स्थायी रूप से बस गये और यहाँ पर भी कपड़े के व्यापार की दुकानें खोलीं।
माता-पिता के धार्मिक संस्कार तो आपको माता की गोद से ही मिलते रहे परिणामस्वरूप आर्थिक उन्नति के साथ-साथ आपकी धार्मिक भावनाएं भी विकसित होती गईं। निज पुरुषार्थ से कमाए हुए न्यायोपार्जित द्रव्य को उदारता पूर्वक धार्मिक और सामाजिक क्षेत्रों में दान देते रहे और अनेक धार्मिक कार्य किये
१. अनेक साधनहीन साधर्मों भाइयों की पुत्रियों के विवाह में गुप्त रूप से आर्थिक
सहयोग दिया। २. श्री सिद्धगिरि तीर्थ पर प्राचार्य श्रीविजयानन्द सूरि की प्रतिमा को पधराने का लाभ
भी आपने लिया। ३. अनेक तीर्थ यात्राएं की, तीर्थ यात्रा स्पेशल ट्रेनों का प्रबन्ध करके संघपति बनने का
लाभ लिया। ४. श्री तारंगाजी, शंखेश्वर पार्श्वनाथ, आदि तीर्थों पर चाल भोजशालाओं में अनेक बार ___दान दिया। जिसकी स्मृति में वहाँ के व्यवस्थापकों ने आपके फोटो लगाये। ५. पालीताना (सौराष्ट्र) में आत्मवल्लभ जैन धर्मशाला में आपने तन-मन-धन से उदारता
पूर्वक सहयोग दिया। ६. श्री हस्तिनापुर जैन श्वेतांबर तीर्थ के प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार का शिलान्यास __आपने ही किया। ७. श्री आत्मानन्द जैन डिग्री कालेज अम्बाला शहर में बड़ी रकम दान में दी। ८. श्री वल्लभविहार (गुरुमंदिर) को अम्बाला शहर में निर्माण कराने में सर्वप्रथम ___आपने ही सर्वाधिक रकम खर्च करने का लाभ लिया। ६. श्री आत्मानन्द जैन हाई स्कूल अम्बाला शहर में श्री गणेशहाल के नाम से आपने
। अपने पिता श्री की स्मृति में बहुत बड़ा हाल निर्माण कराकर भेंट किया। १०. अनेक साधर्मी वात्सल्य किये, साधु-साध्वियों की वैयावच्च केलिये भी उदारतापूर्वक
धनराशि खर्च की।
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