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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
धर्म, साहित्य तथा राजनीति के मर्मज्ञ विद्वान एवं जनसमाज के पुराने ख्याति प्राप्त निःस्वार्थ सेवक महात्मा भगवानदीनजी द्वारा लिखित एक पुस्तक 'मेरे साथी' २५ वर्ष पूर्व प्रकाशित हई थी। उसमें उन्होंने वीरचन्द गाँधी का भी वर्णन किया था । उसका एक उद्धरण यहाँ देते हैं
.......श्री वीरचन्द गांधी १९वीं सदी की पैदाइश थे । हिन्दुस्तान को गुलाम हुए पूरे ३६ वर्ष बीते थे। अभी तक इस देश में ऐसे आदमी जीवित थे, जिन्हें देश की गुलामी छू न पायी थी। तभी तो वे अमेरिका के मेसाँनिक टैम्पल में एक दिन खड़े होकर अमेरिकावासियों से उस विषय पर चर्चा कर बैठे, जिसके बारे में यह कहा जाता है कि उस विद्या का जन्मदाता यूरोप है, जिसे हिप्नोटिज्म नाम से पुकारा जाता है ।
कितना आकर्षण रहा होगा उस वीरचन्द राघवजी गाँधी में, जिस वक्त मेसांनिक टेम्पल में हिप्नोटिज्म पर बोलते हुए उन्होंने लोगों से कहा कि कमरे की बत्तियां हलकी कर दी जायें और जैसे ही हलकी हुई कि उस सफ़ेद कपड़ेधारी हिन्दुस्तानी की देह से एक प्राभा चमकने लगी मौर उसकी पगड़ी ऐसी मालूम होने लगी कि मानो उस आदमी के चेहरे के पीछे कोई सूरज निकल रहा हो और जिसे देखकर अमेरिकावासियों का कहना था कि वे उस प्राभा को न देख सके। उनकी आँखें बन्द हो गईं और थोड़ी देर के लिये उन्हें ऐसा मालूम हुअा मानो वे सब समाधि अवस्था में हों।
उनके अमेरिका में दिए हुए भाषणों का उपयोगी संग्रह प्रकाशित हो चुका है, पाठक उसे जरूर पढ़ें।
उस संग्रह में की गई कुछ श्रद्धांजलियां निम्नलिखित हैं
(१) "प्रसिद्ध हिन्दू विद्वानों, दार्शनिकों और धर्मगुरुत्रों का एक मण्डल धर्मपरिषद में उपस्थित था। उन्होंने वहाँ भाषण भी दिये। उनमें से कुछ सहृदयता, वक्तृता, तथा विद्वता की दृष्टि से किसी भी अन्य जाति के उच्च विद्वानों के भाषणों के समकक्ष थे । किन्तु यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि पूर्व के विद्वानों में से जिस रुचि के साथ जैन युवक श्रावक का जैन आचार तथा जैनदर्शन सम्बन्धी व्याख्यान सुना गया था, वैसे और किसी का नहीं सुना गया।"
(२) “गाँधी जी दृढ़ व्यक्तित्व के युवक हैं, उनमें उत्साह है और वे अपने उद्देश के प्रति सच्चे तथा लगन वाले पुरुष हैं। उन का नैतिक साहस अपार है, और उनमें पूरा-पूरा प्रात्म सम्मान है ।.......... 'जब वे मनुष्य जाति के स्वार्थ व अन्याय का तथा अनपढ़ दीन जनसाधारण के दुःखों का वर्णन करने लगते हैं, तब उनकी वक्तृत्वकला खिल उठती है और उनकी आत्मा उनके नेत्रों में चमकने लगती है । जबभी अवसर मिले, उनके भाषण सुनने से किसी को भी चूकना नहीं चाहिये । वे भारत और उसके निवासियों के विषय में आपकी सब भ्रांतियां दूर कर देंगे।"
(३) "मुझे जीवन में ऐसे व्यक्ति (वीरचंद गाँधी जैसे) के दर्शन का सौभाग्य बहुत ही कम मिला है, जिसका अध्ययन व संस्कार इतने महान तथा विविध हैं और जिसके मन्तर में इतनी मधुर निष्ठापूर्ण और शिक्षाप्रद आत्मा है।"
स्व० श्री गुलाबचंद ढड्ढा एम० ए० ने भी वीरचंद जी के अमेरिका में किये गये कार्यों के विषय में एक विशेष महत्वपूर्ण बात का उल्लेख किया है । वे लिखते हैं कि "अमेरिका से वापिस पाने के बाद श्री गांधी जी से अजमेर में मेरी भेंट हुई। वहाँ हम दोनों भाषण के लिए निमन्त्रित किये गये थे। इस भेंट के समय गांधी जी ने मुझे चिकागो के डाक विभाग के एक उच्च अधिकारी
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