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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म ही व्याख्याग मंडप में होते रहते थे । समय-समय पर सबकी परस्पर धमंगोष्ठी और मैत्रीपूर्ण धर्म के अनेक विषयों पर चर्चाएं भी होती रहती थीं । जसवंतश्रीजी भी अपनी शिष्यामों प्रशिष्याओं के साथ इन सब प्रसंगों पर सक्रिय भाग लेती थीं। इनकी परम विदूषी शिष्या श्री प्रियदर्शना श्रीजी के प्रवचन तो अपना विशिष्ट गौरव रखते थे । हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोता जनता जनार्दन इनके प्रवचनों से मंत्रमुग्ध होकर एकाग्रता पूर्वक सुनती थी। इस प्रकार इस चतुर्मास में इन्दौर की जैनजनता में एकता का सुन्दर वातावरण प्रसारित हो गया था। मात्र इतना ही नहीं अपितु अजैन जनता भी अधिकाधिक संख्या में आप लोगों के प्रवचनों से लाभान्वित होने के लिये व्याख्यान प्रारम्भ होने से पहले ही व्याख्यान मंडप में उपस्थित हो जाती थी। इस प्रकार एकता, संगठन का बीजारोपण किया गया। वहां से बम्बई में जाकर चतुर्मास किया । पश्चात् पालीताना में पाकर प्रापने (जसवंतश्री जी ने) वैशाख सुदि ३ को वर्षीतप का पारणा किया तथा अपनी शिष्याओं को सिद्धगिरि की निनानवें यात्राएं करने की प्रेरणा की। निनानवें यात्रा तथा चतुर्मास पूर्ण करने के पश्चात आपने अपनी शिष्यानों प्रशिष्याओं के साथ शास्त्राध्ययन तथा संस्कृत-प्राकृत प्रादि के ठोस ज्ञान के लिए गुरुदेव की प्रेरणा से अहमदाबाद में पांच वर्ष रहकर अभ्यास करने का निश्चय करके प्राप प्रहमदाबाद में पाये । तबसे आप लोगों का बराबर नाना विषयों का अभ्यास चालू है । साध्वी जसवंतश्री जी का मुखमंडल सदा खिला रहता है । स्वभाव सरल तथा श्रद्धा प्रधान जीवन है। प्राणी मात्र के प्रति करुणा तथा वात्सल्य भाव मे हृदय परिपूर्ण है । किसी भी प्राणी को दुःखी देखकर आपका हृदय पसीज उठता है। आपके मन में गुरु आत्म पौर वल्लभ के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये उत्कट भावना बनी रहती है । ज्ञान प्रचार, मध्यमवर्ग की सहायता के लिये प्राप सदा जागरुक रहती हैं । अहमदाबाद में इस विद्याभ्यास की कालावधि समाप्त कर आपकी भावना पंजाब में विचरणे की है । २-साध्वी प्रियदर्शनाश्री जी गुजरांवाला (पंजाब) में लाला दीवानचन्द जी बीसा प्रोसवाल दूगड़ के सुपुत्र लाला मनोहरलाल जी की अर्धा गी तिलक सुन्दरी की कुक्षी से पद्मादेवी का जन्म वि० सं० १९६५ में हुआ। पिताजी का व्यवसाय पीतल प्रादि धातुओं के बरतनों का था । लाला मनोहर लाल के तीन पुत्र और तीन पुत्रियाँ हैं । पद्मा अपनी तीनों बहनों में मंझली है । वि० सं० २००४ (ई० स० १९४७) को देश का विभाजन हो जाने पर गुजरांवाला भी पाकिस्तान में प्रा गया और इनका सारा परिवार पाकिस्तान छोड़कर अम्बाला शहर में आकर आबाद हो गया । लाला मनोहरलाल का व्यवसाय यहाँ पर भी पूर्ववत बरतनों का ही है । यह परिवार सब तरह से सम्पन्न है । ___ अम्बाला में प्राकर पद्मा ने स्कूल की मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। मैट्रिक के बाद पद्मा को कालेज की पढ़ाई करने की रुचि थी परन्तु माता-पिता ने इसे कालेज भेजना पसन्द नहीं किया । तथापि इसने घर पर ही पढ़ाई चालू रखी । पंजाब विश्वविद्यालय की हिन्दी की उच्चतम परीक्षा पास कर 'प्रभाकर' की उपाधि प्राप्त की। पश्चात् (Teacher training) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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