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साध्वीश्री मृगावती जी
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प्रवचन किया तो उसी समय पंजाबी गुरुभक्तों ने पचास हजार रुपये की धनराशि एकत्रित कर दी। उसी व्याख्यान मंडप में प्रापने घोषणा की कि कांगड़ा के अत्यन्त प्राचीन जैनतीर्थ की कीर्ति को बढ़ाने हेतु पूर्ण योगदान देने के लिये वि. सं. २०३५ का चतुर्मास कांगड़ा में करूंगी। जिसके परिणामस्वरूप आपने यह चतुर्मास कांगड़ा किला के जैनश्वेतांबर मन्दिर की तलहटी में नवनिर्मित जैनश्वेतांबर धर्मशाला में अपनी शिष्याओं, साध्वी सुज्येष्ठाश्री, साध्वी सुव्रताश्री और साध्वी सुयशाश्री के साथ किया। यह कांगड़ा तीर्थ महाभारत काल से जैन श्वेतांबर तीर्थ चला आ रहा है । कुछ शताब्दियों पहले सात जैनश्वेतांबर मन्दिर कांगड़ा नगर में तथा दो जैन श्वेतांबर मन्दिर कांगड़ा किले में थे और यहां के कटौच वंशीय राजा भी जैनधर्मानुयायी थे। इस नगर में श्वेतांबर जैनों के सैकड़ों परिवार आबाद थे । पर आज यहां न तो जैनलोग ही आबाद हैं और न ही किले में श्री आदिनाथ प्रभु की एक जनश्वेतांबर पाषाण प्रतिमा के सिवाय कोई जैनमन्दिर विद्यमान है । किले के आस-पास में प्राय: प्राबादी भी नहीं है।
___ साध्वीजी महाराज ने मात्र इस तीर्थ के उद्धार केलिये ऐसे निर्जन स्थान में चतुर्मास करने का साहस किया। प्रतः आपने श्रावण मास से फाल्गुन मासतक पाठ मास में कार्तिक तथा फाल्गुण के दो चतुर्मास लगातार करके इस तीर्थ का उद्धार किया। इतिहास साक्षी है कि ५०० वर्षों से यहां पर किसी साधु-साध्वी का चतुर्मास अथवा स्थिरता करने का कोई प्रमाण नहीं मिलता । हां साधुसाध्वियों के इस क्षेत्र के जैनतीर्थों की यात्रा करने के विक्रम की १७ वीं शताब्दी तक के विवरण अवश्य मिलते हैं जो श्रावक-श्राविकाओं के संघ के साथ अथवा अकेले यात्रा करने यहां आये थे किंतु यात्रा करने के बाद वे यहां से लौट गये थे ।
कांगड़ा का ऐतिहासिक चतुर्मास कांगड़ा किला का श्वेतांबर जैन आदिनाथ मन्दिर सरकारी कब्जे में होने के कारण वर्ष भर में केवल तीन दिन (फाल्गुण सुदी १३, १४, १५) केलिये ही जैनों को सेवा-पूजा की आज्ञा प्राप्त थी।
(१) कांगड़ा तीर्थ में वि. सं. २०३५ में जैन श्वेतांबर तपागच्छीय साध्वी, जिनका प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरिजी महाराज के साध्वी समुदाय में महत्त्वपूर्ण विशिष्ट स्थान है; मृगावती जी ने अपनी तीन शिष्याओं के साथ चतुर्मास किया। आपकी आध्यात्मिक शक्ति से प्रेरित होकर विभिन्न माध्यमों के प्रयत्नों से सरकार ने कांगड़ा जैन श्वेतांबर तीर्थ में किले में विराजमान श्री आदिनाथ (ऋषभदेव) भगवान की भव्य प्रतिमा के पूजन-प्रक्षाल की सदा के लिये स्थाई अनुमति प्रदान कर दी।
कलकत्ता निवासी बाबू विजयसिंह नाहर एम० पी० महामंत्री जनतापार्टी तथा दुर्गाचंदजी सांसद को जैन भारती साध्वी श्री मृगावतीजी ने अपने प्रवचन में इस तीर्थ के उद्धार केलिये उत्साहित किया और उन्होंने इस कार्य में पूरा सहयोग देने का वचन दिया तथा उनके प्रयास से पूजा-प्रक्षाल की अनुमति सरकार की तरफ से जैनों को सदाके लिये मिल गई । राज्यादेश के अनुसार प्रतिदिन प्रात: ७ बजे से १२ बजे तक और सांय ६ बजे से ७ बजे तक पूजन एवं दर्शन किये जा सकते हैं।
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