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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म परोग्राम बन चुके थे । श्राक्रमणकारियों ने अनेक बार जैन धर्मस्थानों पर प्राक्रमण करने के मनसुबे बनाये | पर प्राचार्य श्री के प्रताप तथा प्रवर्तनी जी के शील के प्रभाव से वे सदा असफल रहे । ५२६ प्राचार्य श्री अपने मुनिमंडल सहित तथा प्रवर्तनी जी प्रादि साध्वियाँ तथा सकल जैन संघ इस समय गुजरांवाला में ही थे । यह समय चतुर्मास का था । पाकिस्तान में तार-पत्रों का व्यवहार बन्द हो गया । पंजाब के जैनसंघों के सब नमरों में क्या परिस्थिति है उसे जानने का कोई साधन न रहा। भारत में रहनेवालों को भी साधुसाध्वियों, तथा श्रावक-श्राविकाओंों का क्या हुआ उसका समाचार मात्र नहीं मिल पाता था । समाचार पत्रों में भी जो समाचार छपते थे वे भी अधूरे थे । एक समय तो सारे भारत में यह अफ़वाह फैल गई थी कि - पाकिस्तान में तीन जैनसाधु कत्ल कर दिये गये हैं- प्राचार्य श्री को भी पत्थर लगे हैं, साध्वियों का पता नहीं है, सभी जिनमन्दिर भस्मीभूत हो चुके हैं। इन सब समाचारों से जैनजगत बेचैन हो गया । आचार्य श्री साधु-साध्वियों के बचाने के लिए तारों पर तार दिये जाने लगे । साधु-साध्वियों को वायुयानों से लाने के लिये हलचल मच गई। जब गुरुदेव को किसी प्रकार से ये समाचार मिले तो उन्होंने एकदम इनकार कर दिया और घोषणा की कि जब यहाँ के श्रावक-श्राविकाएं पाकिस्तान से सुरक्षित निकल जायेंगे तभी हम साधु, साध्वी भी निकलेंगे । इस पर और भी अधिक बेचैनी होने लगी । परन्तु देव, गुरु, धर्म के प्रताप से किसी भी श्रावकश्राविका और साधु-साध्वी को नुकसान नहीं हुआ । पर्युषण पर्व के बाद वि० सं० २००४ भादों सुदी ११ शुक्रवार ता० २६-९-१९४७ ई० के दिन गुजरांवाला नगर से चलकर आचार्य श्री तथा प्रवर्तनी जी अपने-अपने साधु-साध्वियों के साथ गुजरांवाला के स्थानकमार्गी तथा श्वेतांबर ग्राम्नाय के समस्त श्रावक-श्राविकाओं को साथ में ले कर श्री आत्मानन्द जैर गुरुकुल में पधारे। दूसरे दिन ता० २७-६-४७ को सायं ४ बजे सारा चतुर्विध संघ सुरक्षित लाहौर जा पहुंचा । अग्रिम व्यवस्था के अनुसार सबने नेशनल कालेज लाहौर में विश्रांति ली । दूसरे दिन प्रातःकाल समस्त साधु-साध्वियों ने गरम पानी से पारणा किया और श्रावक-श्राविकाओंों ने दोपहर के बाद थोड़ी खाद्यसामग्री याने दाल के साथ दो-दो रूखी रोटियां खा कर संतोष मनाया । रविवार ता० २८-९-१९४७ की संध्या को अमृतसर शहर के बाहर शरीफ़पुर में रहे और दूसरे दिन सोमवार ता० २६-६- १९४७ को प्रातः काल को समस्त साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाओं ने अमृतसर नगर में प्रवेश किया । पाकिस्तान से सही-सलामत भारत पहुंचने का समस्त श्रेय मात्र आचार्य भगवान् श्री मद् विजयवल्लभ सूरीश्वर जी तथा प्रदर्श प्रवर्तनी जी की प्रभावकता को था । परन्तु व्यवहारिक रूप से इस यश की भागी बम्बई की मानवी राहत समिति और मुख्यतः गुरुभक्त श्री फूलचन्द शामजी, श्री फूलचंद नगीनदास, श्री मणिलाल जयमल शेठ, तथा गुजरांवाला निवासी लाला माणकचंद जी के सुपुत्र लाला कपूरचंद जी दूगड़ हैं । चतुर्मास में जैन साधु-साध्वी एक नगर से दूसरे नगर पर साधारण स्थिति से विहार नहीं करते हैं, यह उनकी मर्यादा है। परन्तु दुर्भिक्ष, महामारी, युद्ध, अशांत वातावरण, रक्तपात प्रादि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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