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________________ ४५८ मध्य एशिया और पंजाब में जैन धर्म ८. श्री जयविजयजी, ६. श्री सुन्दरविजयजी १०. श्री अमृतविजयजी, ११. श्री हेमविजयजी, १२. श्री राजविजयजी १३. श्रीकृवरविजयजी, १४. श्री संपतविजयजी, १५. श्री माणकविजयजी, १६. श्री वल्लभविजय (प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि)जी, १७. श्री भक्तिविजयजी, १८. श्री ज्ञानविजयजी, १६. श्री शुभविजयजी, २०. श्रीलब्धिविजय (प्राचार्य विजयलब्धि सूरि) जी, २१. श्री मानविजयजी, २२. श्री जसविजयजी, २३. श्री मोतीविजयजी, २४. श्री चन्द्रविजयजी, २५. श्री विवेक विजयजी, २६. श्री कपूरविजयजी, २७. श्री लाभविजयजी इत्यादि । जिनमंदिरों की प्रतिष्ठा एवं अंजन शलाका करायी नगर संवत् मिति प्रतिष्ठा अंजनशलाका १. अमृतसर १६४८ वैसाख सुदि ६ २. जीरा १६४८ मगसिर सुदि ११ ३. होशियारपुर १६४८ माघसुदि ५ ४. पट्टी १९५१ माघ सुदि १३ ५. अंबाला शहर १९५२ मगसिर सुदि १५ ६. सनखतरा १९५३ बैसाख सुदि १५ प्रतिबोधित प्राम-नगर १. जीरा, २. मालेरकोटला, ३. होशियारपुर, ४. बिनौली, ५. लुधियाना, ६. अंबाला शहर, ७. अंबाला छावनी, ८. अमृतसर, ६. जंडियाला गुरु, १०. लाहौर, ११. नारोवाल, १२. सनखतरा, १३. पट्टी, १४. पटियाला, १५. नकोदर, १६. शांकर, १७. जालंधर, १८. मयानी, १६. गढ़दीवाला, २०. नाभा, २१. सामाना, २२. सुनाम, २३. जेजों, २४. रोपड़, २५. फगवाड़ा, २६. वैरोवाल इत्यादि। संवेगी साधुओं में पीली चादर का प्रचलनयतियों, ढढकमतियों का वेश लगभग श्वेतांबर साधुनों के समान होने से और प्रागम प्रणीत श्वेतांबर साधुओं के प्राचार से शिथिल एवं भिन्न होने से शुद्ध समाचारी पालन करनेवाले संवेगी साधुओं की पहचान के लिये गणि सत्यविजय जी ने वि० सं० १७०६ में पीली चादर का प्रचलन किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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