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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म कहने और पाचरण करने से कोई भी बड़ी से बड़ी शक्ति अथवा प्रलोभन, प्रतिष्ठा प्रापको डगमगा नहीं सकती थी।
विरासत में वृद्धि आप को जो जनश्रुत वारसा में मिला था यदि आप उसी में सन्तुष्ट होकर बहुश्रुत कहलाते तो इतना उच्चपद कभी न मिल पाता । आपने देशकाल की विद्या समृद्धि को देखा, नए साधनों को पहचाना, भविष्य में आने वाली जोखम को समझा, इससे आपकी आत्मा तनमना उठी और इसके लिए आपसे जितना भी बन पाया, किया।
आपने वेदों को पढ़ा, उपनिषदों को देखा, श्रोत सत्रों, स्मृतियों और पुराणों का पारायण किया, नवीन सामयिक साहित्य को देखा । जैनागमों-पंचांगी के मर्म को जाना । मृत और जीवित सभी जैन शाखामों का साहित्य, उनका इतिहास और उनकी परम्पराओं को जाना। उसके बाद जो स्वयं कहना था उसे निःसंकोच कह डाला। आपके कथन में शास्त्रों का प्रचण्ड संग्रह है, व्यवस्था की प्रतिभा हैं, सत्यता की झंकार हैं, और अभ्यास को जागृति है । आपने प्राप्त वारसा में इतनी वृद्धि करके जो आदर्श उपस्थित किया है वह आगे होने वाले प्राचार्य पदवीधरों को सावधान किया है कि जैन शासन की सच्ची सेवा किस में है ।।
आपके विषय में कुछ विद्वानों के अभिप्राय १. कलकत्ता रायल एशियाटिक सोसायटी के प्रॉनरेरी सेक्रेटरी डा० ए० एफ़. रुडोल्फ हारनल ने उपासकदशांग सूत्र का अनुवाद सहित सम्पादन किया था । यह ग्रंथ प्राप श्री को अर्पण करते हुए अपनी अर्पण पत्रिका में अपने भाव इस प्रकार प्रकट किये हैं
दुराग्रह-ध्वान्त-विभेद-भानो, हितोपदेशामृत-सिंधु-चित सन्देह संदोह-निरास कारोन् जिनोक्त-धर्मस्य-धुरंधरोऽसि---- प्रज्ञान-तिमिर-भास्करमज्ञान-निवृत्तये सहृदयानाम् अर्हत्-तत्त्वादर्श-ग्रंथ-परमपि भवान् कृत ।। आनन्दविजय श्री मन्नात्माराम-महामुने ! मदीय निखिल प्रश्न-व्याख्यात शास्त्रे पारग ।।
(डा० ए० एफ़० रुडोल्फ़ हारनल) अर्थात् --दुराग्रह रूपी अंधकार को छिन्न-भिन्न करने में आप सूर्य के समान हैं। हितकारी धर्मामृत के एक समुद्र हैं। संदेह के समूह से छुड़ाने वाले और जैनधर्म की धुरा को धारण करने वाले पाप ही हैं।
___ सहृदय पुरुषों के अज्ञान को टालने के लिए पाप ने अज्ञान-तिमिर-भास्कर और जैन तत्त्वादर्श आदि ग्रंथों की रचना की हैं।
__ हे प्रानन्द विजय जी, श्री प्रात्माराम जी महामुने ! आपने मेरे समस्त प्रश्नों का बड़ी ही उत्तम रीति से समाधान किया हैं। आप वास्तव में शास्त्र पारंगत हैं।
२. विद्वान मुनि श्री (प्रात्माराम) जी जो निबन्ध तैयार कर रहे हैं, वह अवश्य अति
1. महावीर जैन विद्यालय बम्बई में श्री आत्माराम जी महाराज की जयंति के अवसर पर जेठ सुदि ८ को
पं० सुखलाल जी के भाषण का हिन्दी रूपांतर ।
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