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________________ ३०२ मध्य एशिया और पंजाब में जनधर्म चार्वाक, नाजरीन, यहूदी, साखी और पारसी आदि प्रत्येक वहाँ के धर्मानुशीलन का प्रानन्द लेता था । 1" इस वाक्य में जैनसाधु को (नहीं कि बौद्धसाधु को ) सूचित करने वाले 'यति और सेवड़ा' शब्द दिये हुए हैं । तो भी डा० स्मिथ कहता है कि 'चैलमर्स' ने अकबर नाम के अंग्रेज़ी अनुवाद में भूल से इसका अर्थ 'जैन और बौद्ध' किया है । तत्पश्चात् उसी का ही अनुकरण करके 'इलियट तथा डाउसन' कि जो मुसलमानी इतिहास संग्रह के कर्ता है, इन्होंने भी यही भूल की है, और इसी भूल ने वॉननोर को भी अपनी पुस्तक में भूल करने को बाध्य किया है । इस प्रकार एक के बाद एक प्रत्येक लेखक भूल करता गया और इस का परिणाम हम यहाँ तक देख पाते हैं कि अकबर के संबन्ध में जैनेतर लेखकों द्वारा लिखे गये प्रत्येक अनुवाद तथा स्वतंत्र ग्रंथ जहाँ देखों वहाँ बौद्धों का ही नाम देखने में आता है । यहाँ तक कि बंगाली, हिन्दी, गुजराती ग्रंथ लेखक भी इसी तरह की ही भूल करते श्रा रहे हैं । किन्तु किसी ने भी इस बात की खोज नहीं की कि वास्तव में अकबर की धर्मसभा में कोई बौद्ध साधु था या नहीं ? श्रथवा अकबर ने किसी दिन बौद्धसाधु का उपदेश सुना भी था या नहीं ? वस्तुतः वर्तमान की शोध के अनुसार यह निर्विवाद सिद्ध होता है कि अकबर को कभी भी किसी विद्वान् बौद्धसाधु के साथ समागम करने का अवसर प्राप्त नही हुआ । इसके लिये अनेक प्रमाण देकर पुस्तक का आकार बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है । सबसे सुदृढ़ प्रमाण तथा सर्वाधिक मान्य अबुल फ़ज़ल के कथन का ही यहाँ उल्लेख करेंगे । वह आइने अकबरी में एक जगह कहता है कि " चिरकाल से हिन्दुस्तान में बौद्धसाधुओं का कोई भी पता नहीं मिलता। हाँ पेगू, तथासरिम एवं तिब्बत वे मिल जाते हैं । बादशाह के साथ तीसरी बार की काश्मीर की स्मरणीय मुसाफ़री को जाते हुए इस (बौद्ध) मत को मानने वाले दो-चार वृद्ध मनुष्यों की मुलाकात तो अवश्य हुई थी, किन्तु किसी विद्वान् के साथ मेल-मिलाप नहीं हुआ था । " " इस पर से स्पष्ट है कि - अकबर को किसी भी दिन किसी भी बौद्ध विद्वान् भिक्षु के साथ मिलने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ था । तथा किसी भी बुद्ध विद्वान् ने फतेहपुर सीकरी की धर्मसभा में भाग नहीं लिया था । उपर्युक्त प्रमाण तथा दूसरे अनेक प्रमाणों के निष्कर्ष से अन्त में डा० वीसेन्ट स्मिथ भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचा है कि--- "To sum up, Akbar never came under Buddhist influence in any degree whatsoever. No Buddhists took part in debates on religion held at Fatehpur Sikri, and Abu-l-Fazal never met any learned Buddhist. Consequently his knowledge of Buddhism was extremely slight. Certain persons who part in the debates have been supposed aroneously to have been Buddhists, were really Jains from Gujrat."3 1. अकबरनामा वेवीरज का अंग्रेजी अनुवाद खंड ३ श्रध्याय ४५ पृष्ठ ३६५ 2. देखें आइने अकबरी खंड ३ जेरिट कृत अंग्रेजी अनुवाद पृ० २१२ 3. Jain Teachers of Akbar by V. A. Smith. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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