SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५८ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म उस से खूब लड़ा, परन्तु वह हार गया। सिकन्दर ने उसका राज्य उसके साथी संजय को दिया। फिर प्रवर्ण को जीतकर शिशुगुप्त को वहाँ का राज्य दिया । पश्चात् तक्षशिला होता हुमा केकय देश (जेहलम, शाहपुर, गजरात) में आया। वहाँ का राजा पृरु बड़ी बहादुरी से लड़ा । तक्षशिला के प्राम्भिक राजा ने हमला करके उसे पकड़ लिया । सिकन्दर ने उसे भी अपना सेनापति बना लिया और ग्लुचकायन देश को जीतकर उस के प्राधीन किया। चनाब नदी के उस पार मुद्रक देश का राजा पुरु का भतीजा था। वह भी बिना लड़े प्राधीन हो गया। स्यालकोट के मुकाम पर माझा के कठ लोग और शुद्रक तथा मालवा के राजा खूब लड़े। परन्तु पुरु की सहायता से सिकन्दर की जीत हुई। आगे रावी और व्यास नदी के पास पहुंचने पर नन्द राजा की शक्ति और प्रभाव से भयभीत होकर सिकन्दर की सेना ने आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया । यह ईसा से ३२७ वर्ष पहले की बात है। लाचार होकर सिकन्दर जेहलम नदी तक वापिस पाया और वहां से दक्षिण की तरफ बढ़ा । शिवि राजा ने बिना लड़े ही प्राधीनता मान ली। अगलस्य, मालव, शुद्रक जाति के लोग लड़े । उस लड़ाई में सिकन्दर की छाती में घाव हो गया। आगे चलने पर अम्बष्ट, वसाती और क्षौद्र जाति के लोगों ने मुकाबिला नहीं किया। वहाँ से सिकन्दर सिन्ध. की तरफ़ बढ़ा । मुचिकर्ण राज्य ने भी उस का मुकाबिला नहीं किया। प्रतः सिकन्दर ने उसे बहुत निर्दयता से दबा लिया। फिर पातानप्रस्थ (हैद्राबाद सिंध) पहुंचा । पश्चात् पश्चिम के रास्ते से हिन्दुस्तान से बाहर हो गया और ईसा से ३२३ वर्ष पहले उसका रास्ते में ही दहांत हो गया। इन दिनों मगध से लेकर पंजाब में व्यास नदी तक नन्द का राज्य था। चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से ईसा पूर्व ३२२ में इस का राज्य छीन लिया। चन्द्रगुप्त मौर्य जाति का क्षत्रीय था। चाणक्य ब्राह्मण था। सम्राटे चन्द्रगुप्त मौर्य और मंत्री चाणक्य भारतीय इतिहास क्षितिज के प्रारंभिक प्रकाशमान नक्षत्रों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं । यदि चन्द्रगुप्त मौर्य को भारत के ऐतिहासिक यूग के प्रथम प्रबल प्रतापी सम्राट होने का तथा शक्तिशाली विदेशी शत्रों और आक्रमणकारियों के दांत खट्टेकर अपने साम्राज्य को सुरक्षित बनाये रखने का श्रेय है तो आचार्य चाणक्य उस साम्राज्य की स्थापना में मूल निमित्त और उसके प्रधान स्तम्भ हैं। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के राजनीतिज्ञ गुरु, समर्थ सहायक, उसके राज्य के कुशल व्यवस्थापक और नियामक थे। राजनीति के ये महानगुरु थे। इन का प्रसिद्ध अर्थशास्त्र अपने समय में ही नहीं वरन तदुत्तरकालीन भारतीय राजनीति और राजनीतिज्ञों को भी सफल मार्गदर्शक रहा है। प्राचीन युनानी लेखकों के वृतांतों, शिलालेखीय और साहित्यिक आधारों तथा प्राचीन अनुश्रु तियों की ब्राह्मण, जैन एवं बौद्धधारागों से यह तो बहुत कुछ ज्ञात हो जाता है कि किस प्रकार मगध के तत्कालीन नन्द नरेश के बर्ताव से कुपित होकर ब्राह्मण चाणाक्य ने नन्द के नाश की प्रतिज्ञा की, किस प्रकार कूटनीति और युद्धनीति का द्विविध प्राश्रय लेकर वीर युवक मौर्य चन्द्रगुप्त के सहयोग से उन्होंने नन्दवंश का उच्छेद किया। किस प्रकार मौर्यवंश की स्थापना हुई और मौर्य चन्द्रगुप्त मगध का सम्राट बना। किस प्रकार उन दोनों ने उक्त साम्राज्य का विस्तार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy