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________________ गुजरांवाला परिवार भी सही सलामत भारत पहुँचे थे । महापुरुषों का जन्मादि स्थान (१) गुजरांवाला में न्यायाम्भोनिधि, नवयुगनिर्माता जैनाचार्य श्री विजयानन्द सूरि, उपाध्याय साहन विजय आदि मुनियों का स्वर्गवास होने से उनका यहाँ समाधि मंदिर था । २४७ (२) यति वसंतारिख यहीं पर बहुत चमत्कारी जैनसंत हो गये हैं (इसका उल्लेख ऊपर किया है) । (३) वेदांतधर्म के प्रखर विद्वान स्वामी रामतीर्थ का जन्म गोस्वामी ( गोसाई ) ब्राह्मण कुल में इसी ज़िले के मुराली वाला गाँव में हुआ था । जो गुजरांवाला नगर से पश्चिम दिशा में सात-आठ मील की दूरी पर था । इन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा गुजरांवाला में तथा एम०ए० तक की शिक्षा लाहौर में पाई थी । पश्चात् २४ वर्ष की आयु में सन्यास लिया था । अमरीका, इंगलैंड, जर्मनी, जापान आदि पाश्चात्य देशों में घूमकर अपने सिद्धान्तों का प्रचार किया था और ३० वर्ष की आयु में दीवाली की रात को देहोत्सर्ग किया था । इन्होंने अपने त्याग तप साधना, चरित्र तथा विद्वता से सारे विश्व को मंत्रमुग्ध कर दिया था । आप जैनाचार्य विजयानन्द सूरि के समयाकालीन थे और श्री वीरचन्द राघवजी गाँधी ( जैनधर्म के प्रतिनिधि) के साथ अमरीका में सर्वधर्म परिषद् में सम्मिलित हुए । (४) वि० सं० १८६७ में गुजरांवाला में ही सत्यवीर, सद्धर्भ संरक्षक मुनि श्री बुद्धि विजय जी ने पंजाब में लुप्त प्रायः श्वेताम्बर जैनधर्म की पुनः स्थापना की शुरूआत की थी । (५) श्रापके महान् शिष्य मुक्तिविजय जी की दीक्षा गुजरांवाला में तथा जैनागमो की शिक्षा प्रकांड विद्वान लाला कर्मचन्द जी दूगड़ शास्त्री के द्वारा हुई थी । (६) आपके द्वितीय शिष्य मुनि श्री वृद्धिविजय ( वृद्धिचन्द) जी का जन्म भी रामनगर जिला गुजरांवाला में हुआ था । (७) मुनि श्री बुद्धिविजय जी ने सर्वप्रथम लाला कर्मचन्द जी दूगड़ शास्त्री से शास्त्र चर्चा करके सत्यमार्ग का निश्चय किया था और यहीं गुजरांवाला में सर्वप्रथम सत्यधर्म की प्ररूपणा की थी । ( ८ ) प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी के शिष्य परम गुरु भक्त प्राचार्य विजयललित सूरि, मुनि शिवविजय जी तथा प्रशिष्य श्राचार्य विजयोमंग सूरि भी इसी धरती के लाडले नौनिहाल थे । (e) लाला कर्मचन्द जी दूगड़ शास्त्री गुजरांवाला में तथा लाला माणकचन्द जी गद्दिया हकीम रामनगर जिला गुजरांवाला में मुनि श्री बुद्धिविजय जी के समकालीन तथा जैनदर्शन-श्रागम के प्रकांड विद्वान थे । इन्हीं के साथ शास्त्र चर्चा करके मुनि श्री बुद्धिविजय जी ने सत्यधर्म के स्थापन करने में सफलता पाई थी । परिणाम स्वरूप जिला गुजरांवाला के दो-चार परिवारों को छोड़कर सब गुरुदेव के अनुयायी बन गए 1 2-3 देखें इस ग्रंथ के लेखक द्वारा लिखित सद्धर्म संरक्षक नामक पुस्तक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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