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________________ २३२ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म रही । जैन परिवारों को यहाँ लाकर बसाने या बाहर भेजने में इन यतियों का विशेष योगदान रहा है । वर्तमान में यहाँ के मुख्य कार्यकारी श्रावकों में सर्वश्री - निरंजनदास, चिमनलाल दुगड़, सुरेन्द्रकुमार, महेन्द्रकुमार मस्त ( श्रीसंघ के चार बार प्रधान व महासभा के सदस्य रहे ) ; डाक्टर सुरेशकुमार, सुमतिसागर व शान्तिकुमार श्रादि हैं । २ज़ीरा नगर जीरा फ़िरोज़पुर नगर की पूर्वदिशा में १८ मील की दूरी और मोगामंडी की उत्तरदिशा १४ मील की दूरी पर है । जीरा रेलवे स्टेशन नहीं है । यातायात के लिए बसों का सुविधाजनक प्रबंध है। लुधियाना, जालंधर, अमृतसर, भठिंडा, फ़रीदकोट, फ़िरोज़पुर आदि से सीधी बसें मिलती हैं । जीरा की जनसंख्या देशविभाजन से पहले छह हज़ार थी जो इस समय पन्द्रह हज़ार से अधिक है । यहाँ की नगरपालिका का क्षेत्रफल इसके फिरोज़पुर जिले में सबसे बड़ा है । यहाँ की मुख्य उपज चावल भोर गेहूं हैं । वि० सं० १८६४ में संयद अहमदशाह ने गुगेरा से श्राकर जीरा नगर को आबाद किया । सैयद अहमदशाह को सिख सरदार मोहरसिंह निशाने वाले ने भगा दिया। फिर सरदार मोहरसिंह को महाराजा रणजीतसिंह के दीवान मोह कमचन्द ने युद्ध में परास्त करके इस नगर को अपने लाहौर राज्य के साथ मिला लिया । पश्चात् सिखयुद्ध के अनन्तर जीरा अंग्रेजी राज्य में सम्मिलित हु इस नगर में वैष्णव संप्रदाय के दो महान संत बालब्रह्मचारी स्वामी शंकरपुरी और स्वामी सत्यप्रकाश (सुते प्रकाश) जी हुए हैं। जो गौरक्षक थे और गरीबों की ज़रूरतों को पूरी करते थे । यहाँ मुसलमान सूफी बाबा मौजुद्दीन (मौजदीन) भी हो गए हैं । जिन्होंने जीरा को वरदान दिया था कि यहाँ न तो कभी बाढ़ आएगी और न डाका पड़ेगा तथा न ही भयंकर आग लगेगी एवं न ही कोई कतल होगा | जो भाज तक सही सिद्ध हुआ है । पाकिस्तान बनने के जनूनी दिनों में भी यहाँ सब प्रकार से शांति रही । जैनों का श्रागमन जीरा बसने के साथ ही ओसवाल ( भाबड़े) जैन लोग भी यहाँ आकर नाबाद हो गए। जिनमें नौलखा, दूगड़ बोथरा, गोसल, रांका, पैंचा, नाहटा प्रादि गोत्रों के परिवार मुख्य रूप से थे । इस नगर में नौलखा जैन परिवार सबसे अधिक है जो आज से लगभग दो सौ वर्ष पहले पाली ( राजस्थान) से आकर सर्व प्रथम मुलतान में बसे । वहाँ से लाहौर में श्राए । लाहौर के नौलखा थाना और नौलखा स्ट्रीट (मुहल्ला ) आज भी इस बात की साक्षी दे रहे हैं । लाहौर से लाला पिंडीदास जी के सुपुत्र लाला फतेहचन्द जी नौलखा का परिवार जीरा श्राबाद हो जाने पर यहां श्राया । जैनों के यहाँ श्राने के बाद पूज ( यति) श्री ज्ञानचन्द जी यहाँ आगए । वे जैनदर्शन, ज्योतिष, चिकित्सा शास्त्र तथा मंत्र, यंत्र के मर्मज्ञ विद्वान थे । श्रापकी इस योग्यता के कारण आपकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई । पूज जी अपने साथ एक जिनप्रतिमा तथा हस्तलिखित शास्त्र भी यहाँ लाये थे । वह प्रतिमा आज भी जीरा के जैन श्वेताम्बर मन्दिर में विराजमान हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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