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________________ २२० मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म देखरेख में करवाकर वि० सं० २०२१ मार्गशीर्ष सुदि १० को युगवीर प्राचार्य श्री मद्विजयवल्लभ सूरि जी के पट्टधर जिनशासन रत्न, शांतमूर्ति आचार्य श्री मद्विजयसमुद्र सूरि जी के द्वारा प्रतिष्ठा करवाई । यहाँ मूलनायक सोलहवें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ भगवान हैं। इस समय यहाँ पर जनों का कोई परिवार प्राबाद नहीं है । इसके जीर्णोद्धार पर सारे भारतवर्ष के श्वेतांबर जैनों का सहयोग रहा है। (२) श्री ऋषभदेव जी का पारणा तथा जिन कल्याणक मंदिर उपर्युक्त श्री शांतिनाथ जी के मंदिर के पीछे पूर्व दिशा के मैदान में श्री हस्तिनापुर जैन श्वेतांबर तीर्थ समिति ने श्री प्रानन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी के तत्त्वावधान में इस मंदिर का निर्माण करवाकर वि० सं० २०३५ वैसाख सृदि ३ (आखातीज) को प्राचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि जी के पट्टधर परमार क्षत्रीय उद्धारक प्राचार्य श्री विजयइन्द्रदिन्न सूरि जी द्वारा इसकी प्रतिष्ठा कराई । इस मंदिर के मध्य में श्री ऋषभदेव तथा उनके प्रपौत्र श्री श्रेयांसकुमार की दो खड़ी पाषाण प्रतिमाए प्रतिष्ठित की गई है। जो श्रेयांसकुमार प्रभु ऋषमदेव को इक्षुरस से पारणा कराते हुए का दृश्य उपस्थित कर रही हैं । इसी मंदिर की दोनों प्रतिमानों के पीछेवाली दीवाल पर श्रेयाँसकुमार का महल, प्रभु का पारणे के लिये पधारना, सोमयश राजा, नगरसेठ तथा श्रेयांसकुमार को आने वाले स्वप्नों पर इन तीनों को मिल कर विचारणा करना। पारणे के पश्चात् प्रभु का वहाँ से विहार तथा श्रेयांसकुमार द्वारा पारणे के स्थान पर स्तूप निर्माण करवाकर पादपीठ तीर्थ की स्थापना करने के दृश्य संगमरमर (मार्बल) के शिलापट्टों पर अकिंत हैं । दक्षिण, पश्चिम तथा उत्तर दिशा की तीनों दीवालों पर श्री शांतिनाथ, श्री कुघुनाथ, श्री अरनाथ इन तीनों तीर्थंकरों के चार-चार कल्याणकों [च्यवन-(गर्भावतरण) जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान] के दृश्य, शिलापट्टों पर अंकित हैं । (३) श्री शांतिनाथ भगवान् का चौमुख जी का मंदिर ___ यह मंदिर श्री शांतिनाथ जी के श्वे० बड़े मंदिर से थोड़ी दूर पश्चिम की ओर तपागच्छीय तपस्वी मुनि श्री प्रकाशविजय जी (प्राचार्य विजयप्रकाशचन्द्र सूरि) के उपदेश से स्थापित श्री आत्मानन्द जैन बालाश्रम के प्रांगण में निर्मित है । इसकी प्रतिष्ठा भी जिनशासनरत्न शांतमूर्ति आचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि ने वि० सं० २०२१ मार्गशीर्ष सुदी १० के दिन की। (४) श्वेतांबर जैन निशियांजी बड़े श्वेतांबर जैनमंदिर की उत्तर दिशा में लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर एक टीले पर श्री ऋषभदेव जी के वर्षीय तप के पारणे के मूलस्थान पर एक प्राचीन स्तूप निर्मित है। यह स्तूप उन प्राचीन स्तूपों में से एक है जिन का वर्णन विविधतीर्थकल्प में किया गया है । परम वर्ष का विषय है कि हस्तिनापुर में जैनों का प्राचीन स्मारकरूप यह एक ही स्तूप बाकी बचा है। इसके आगे पूर्व की पोर श्री ऋषमदेव प्रभु के चरणविम्ब स्थापित हैं, जिनका उल्लेख भक्तामर के टीकाकार ने श्री श्रेयाँसकुमार द्वारा स्थापित पादपीठ तीर्थ के नाम से किया है। इस स्तूप के ऊपर छत्री बनी हुई है । कुछ वर्ष पहले इस प्राचीन स्तूप पर श्री ऋषभदेव जी की जीवनी पत्थरों पर रंगीन चित्रों में खुदवाकर लगा दी गई हैं। इस पर चित्रमय जीवनी के लग जाने पर यह स्तुप सुन्दर तथा सुरक्षित हो गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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