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संधु-सौवीर में जैनधम
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एकदा राजा उदारान ने पौषधशाला में पौषध किया। रात्री के समय धर्मजाग्रण करते हुए मन में विचार किया कि यदि प्रभु महावीर यहां पधारें तो मैं श्रमण की दीक्षा ले लूंगा। उसके मनोगत भावों को केवलज्ञानी प्रभु महावीर जानकर चंपापुरी से चल पड़े। रास्ते में सख्त गरमी के कारण साथी शिष्य साधुनों को विहार में बहुत कष्ट सहने पड़े। कोसों तक वस्ति न मिलती । उस समय अपने भूखे-प्यासे शिष्यों के साथ जब भगवान महावीर चले आ रहे थे। तब रास्ते में उन्हें तिलों से लदी हुई बैलगाड़ियां मिलीं। साधु समुदाय को देखकर तिलों के मालिक ने उन्हें तिल लेने के लिये प्रार्थना की, जिन्हें खाकर वे अपनी क्षुधा शांत कर सकें। परन्तु भगवान ने अपने साधुओं को तिल लेने की आज्ञा नहीं दी। यद्यपि भगवान जानते थे कि ये तिल अचित है तथापि सचितअचित के भेद को न जानने वाले ये साधु तो अपरिचित थे । अतः संभावना इस बात की थी कि यदि ये तिल खाने की आज्ञा दी जाती है तो कालांतर में छद्मस्थ साधु सचित तिल भी खाने लग जाएंगे।
इसी विहार में प्यास से व्याकुल साधुनों को तालाब दिखलायी दिया। उसका जल अचित था। पर भगवान ने इस हृद(तालाब)का जल भी पीने की प्राज्ञा अपने साथी साधुओं को नहीं दी। क्योंकि इससे भी संभव था कि सचित-अचित जल का भेद न जानने वाले छद्मस्थ साधुनों में तालाब का पानी पीने की प्रथा चालू हो जाएगी।
भगवान महावीर १७ वां चौमासा राजगृही में करके चंपापुरी आये और यहां से विहार करते हुए इंद्रभूति गौतम आदि साधु समुदाय के साथ विक्रम पूर्व ४६६-६५ में ४७ वर्ष की आयु में सिन्धुसौवीर जनपद की राजधानी बीतभयपत्तन में पधारे। इस नगर की उत्तर-पूर्व दिशा में मृगवन नाम के उद्यान में आकर ठहरे प्रभु का आगमन सुनकर उदायन उन्हें वन्दना करने के लिये गया । पश्चात् उसने भगवान से विनती की--"प्रभो! जब तक मैं अपने पुत्र को राज्यसत्ता सौंप कर आप के पास वापिस न पाऊं, तब तक आप यहां से न जाइये" । प्रभु ने कहा-"पर इस प्रोर प्रमाद मत करना।"
लौट कर राजा घर आया तो उसे विचार हुआ कि-"यदि मैं अपने पुत्र को राज्य दूंगा तो वह गज्य में फंसा रह जायेगा,चिरकाल तक भव भ्रमण करता रहेगा। इस विचार से उसने अपने भानेज केशी को राज्य दे दिया और स्वयं उत्साह पूर्वक भगवान महावीर से भागवती दीक्षा ग्रहण करली। दीक्षा देकर महावीर वापिस लौट गये और राजर्षि उदायन इसी क्षेत्र में विचरणे लगे। एक उपवास से लेकर एक महीने के लगातार उपवासों तक कठिन तप करने लगे।
___ रूखा-सूखा, बचा-खुचा आहार करने से राजर्षि बीमार हो गये । उस समय वैद्यों ने उन्हें दही खाने की सलाह दी। एक बार विहार करते हुए राजर्षि वीतभयपत्तन में पधारे । मंत्रियों ने केशी राजा को बहकाया। कहा कि उदायन तुमसे राज्य छीनने आया है। इसी आशंका से केशी राजर्षि को दही में विष दिलाकर हत्या करने की सोचने लगा । मौका पाकर राजर्षि को विष मिश्रित दही दिया गया और वे अनजाने में उसे खागये । उन्हें क्या पता था कि वह दही विष मिश्रित
1. आवश्यक चूणि पूर्वार्ध पत्र ३६६ । 2. बृहस्कल्प सूत्र सभाष्य वृत्ति सहित विभाग २ गाथा ६६७-६६६ । 3. त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र पर्व १० सर्ग १७ श्लोक ६१२-६२६ । 4. जैनागम पंचमांग विवाहपण्णत्ति (भगवती सूत्र) श० १३ उ० ६ । 5. चउत्थ-छट्ठ-अट्ठम-दस म-दूवालस-मासद्ध-मासाइणि । तवो कम्माणि कुव्वमाणे विहरइ ।
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