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________________ १७० मध्य एशिया और पंजाब में जनधर्म जिन' शब्द पढ़ा जाता है। पुरातत्त्व विभाग ने इस लेख को पढ़ने के लिये देहरादन में भेज दिया था। जिसका विवरण पुरातत्व विभाग ने आज तक प्रकाशित किया हो, हमारे देखने में नहीं पाया। २-कांगड़ा नगर के स्मारक (१) कांगड़ा के बाजार में आजकल जो शिवमंदिर कहलाता है उसके सामने अाज भी दो जनप्रतिमाएं लगाई गई मौजूद हैं । एक प्रतिमा पर खंडित लेख उत्कीर्ण है जो लगभग एक हजार वर्ष पुराना है। (२) इसी शिवमंदिर की पीठ के पीछे कुछ खण्डित मूर्तियाँ पड़ी हैं, उनमें एक प्रतिमा जैनतीर्थकर की भी है। जिसका धड़ तो पद्मासनासीन है परन्तु सिर नहीं है । (३) श्री श्रुतिकुमार जी के मकान के बाहर एक कुंग्रा है, जिसकी दीवार पर एक पाषाण में जैनप्रतिमा खुदी हुई है। ___ (४) इसी कुंए के समीप भूमि पर एक पत्थर पड़ा था, उसे उठाकर देखा तो उसके मध्य में एक तीर्थ कर की खंडित प्रतिमा है । इसके दोनों तरफ नृत्य करती हुई देवियां अंकित हैं। यह विशाल पाषाण खंड कांगड़ा जैन यात्रासंध के कांगड़ा के स्टोर में सुरक्षित है। (५) श्री श्रुतिकुमार जी के मकान के पीछे भी तीन जनप्रतिमाएँ थीं जो अब वहाँ नहीं है। (६) कांगड़ा के पुराने बाजार की मोड़ पर एक कुंए के समीप एक टूटी-फूटी प्राचीन धर्मशाला है । नगरपालिका के मंत्री महोदय ने बताया कि यह कांगड़ा के राजा के मोदियों (कोठारियों) द्वारा निर्माण कराई गई थी और वह जैन धर्मशाला के नाम से प्रसिद्ध थी। (७) इन मोदियों का यहाँ पर एक बाग भी था जो प्राज नहीं है । (८) कांगड़ा के बाहर जो टोल-टेक्स (कर) की चुंगी है उसके समीप कांगड़ा नगर को आने वाली सड़क के किनारे की पहाड़ी पर तीन गुफ़ाएं थीं। कहते हैं कि ये तीनों गुफाएं जनों की थीं, जहाँ जैन साधु ध्यान-समाधि के लिए आते रहते थे। (६) कांगड़ा की पुरानी नगरी के एक मुहल्ले में एक विशाल कुपा है जिसकी मेड़ पर दो गृहस्थ श्रावकों की मूर्तियाँ अंकित हैं, जो गले में दुपट्टा डाले हुए हैं। यह भावड़यां का कुमा कहलाता था। पंजाब में श्वेतांबर जैन प्रोसवालों को भावड़ा कहते थे। 1 (१०) प्राचीन कांगड़ा नगर के एक बाजार में जो वर्तमान में इस नगर में सबसे प्राचीन मंदिर इन्द्रेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। वह कांगड़ा के राजा इन्द्रचन्द्र का बनवाया हुआ है । यह राजा काश्मीर के राजा अनन्तदेव का समकालीन था। इसलिये यह ई० सं० १०२८ से १०३१ तक विद्यमान था। इस मंदिर के दरवाजे के आगे एक कमान है। मंदिर के मध्य एक सामान्य शिवलिंग स्थापित है। किन्तु कमान के बाहरी भाग में अनगिनत मूर्तियाँ पंक्तिबद्ध स्थापित कर रखी थीं। इनमें से दो मूर्तियां जनों की हैं और बहुत ही प्राचीन है । इनमें से एक मूर्ति बैठी हुई 1. उपर्युक्त विवरण श्री शांतिलाल जन नाहर होशियारपुर वालों के सौजन्य से प्राप्त हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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