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काश्मीर में जैनधर्म
वर्ष के युद्ध के उपरांत जीवन के शेष भाग में जिस प्रकार अशोक ने प्रजा की नैतिक और सामाजिक उन्नति के लिये कई राजाज्ञायें निकाली तथा राज्य में सुव्यवस्था और शांति बनाये रखने के लिये प्रयत्न किये उसी प्रकार कुमारपाल ने भी किया। जिस प्रकार अशोक पहले अन्यधर्मी था, फिर वह बौद्ध हो गया था, उसी प्रकार कुमारपाल भी शैव धर्मानुयायी था, फिर जैन हो गया था। अशोक ने जो कुछ बौद्धधर्म के प्रचार के लिये किया कुमारपाल ने भी जैनधर्म के प्रचार व प्रसार केलिये अपनी सारी शक्ति लगा दी थी। जिस प्रकार अशोक ने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं और उच्चधार्मिक नियमों को स्वीकार कर परमसुगतोपासक की पदवी धारण की थी उसी प्रकार कुमारपाल ने भी जैनधर्म में प्रतिपादित गृहस्थ जीवन को आदर्श बनाने वाले श्रावक के बारह व्रतों को श्रद्धा पूर्वक स्वीकार करके 'परमाहत' पद पाया था। अशोक के समान ही इस ने भी प्रजा को दुर्व्यसनो से हटाने के लिये कई राजाज्ञाएं निकाली थीं। अशोक के स्तूपों की भांति कुमारपाल ने भी कई जनविहारों का निर्माण कराया था। (५) पेथड़शाह
विक्रम संवत् १६२० के लगभग मांडवगढ़ के जैन श्रावक मंत्री पेथड़कुमार (पृथ्वीधर ) ने अपने धर्मगुरु तपागच्छीय जैन श्वेतांबर प्राचार्य श्री धर्मघोष सूरि के उपदेश से भारतवर्ष के ८४ नगरों में जैन मंदिरों का निर्माण कराया और इन मंदिरों की प्रतिष्ठाए भी इन्हीं प्राचार्य से करबाई थीं। भारत के विभिन्न जनपदों के नैनतीर्थों के यात्रासंघ भी प्राचार्य श्री के नेतृत्व में निकाले । इतिहासकार लिखते हैं कि पेथड़शाह जहाँ-जहां यात्रा करने गया वहाँ-वहाँ जैनमंदिरों का निर्माण करता गया । तथा उन मंदिरों की प्रतिष्ठाएं अपने धर्मगुरु प्राचार्य धर्मघोष द्वारा कराई। उन मंदिरों में से १-पारकर (सिन्धु जनपद ) में कच्छ से उत्तर में, २-जालंधर (त्रिगर्त कांगड़ा जनपद), ३-हस्तिनापुर (कुरुक्षेत्र), ४-देपालपुर (सिन्ध) ५-काश्मीर, ६-वीरपुर (सिन्ध) ७-उच्चनगर, ५-पाशुनगर (पेशावर), 8-जोगिनीपुर (दिल्ली) आदि पंजाब के अनेक नगरों में भी जैन मंदिरों का निर्माण कराया। पेथड़शाह के साथ प्राचार्य धर्मघोष सूरि भी अपने शिष्योंप्रशिष्यों के साथ पधारे थे और कई वर्षों तक इस जनपद में जैनधर्म का प्रचार किया था।
(३) कवि कल्हण ने अपनी राजतरंगिणी में अन्य अनेक लोगों के नाम भी दिये हैं जो पशुबलि, नरबलि, प्राणिवध तथा हिंसा के सख्त विरोधी थे और परम अहिंसक थे । इस से भी ज्ञात होता है कि वे भी जैन धर्मानुयायी थे। उन में से कतिपय के नाम यहाँ दिये जाते हैं ।
१-अनंगपाल (७:१४७), २-अनन्तदेव (७:२०१), अमृतप्रभा (२:१४८,३:६) अनन्तीवर्मा (५:३२-३४) आदि ने पशुबलि और हिंसा बन्द करवाई। ५-इन्दूराज यह एक व्यक्ति का नाम है (७:२६३ ) जिस के पुत्र और पौत्र के नाम क्रमशः ६-बुद्धराज और ७-सिद्धराज हैं । ये नाम भी उन के जैन होने का संकेत करते हैं। ८-उदयराज ने राजा हर्ष के समय में मंदिरों से धातुनिर्मित मूर्तियों और वस्तुओं को निकाल कर सुरक्षित रखने के लिये देवोत्थान नामक निगम बनाया (७:१०६१), इन्द्रचन्द्र जालंधर जनपद (कांगड़ा राजधानी) का जैन राजा था (७:१५०) वह कटौच वंशी त्रिगर्त जिनपद का निवासी था। आदि सब जैनी थे।
(४) इस जनपद में एक उच्चजाति महाजन नाम से है । प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक सारे भारत में श्वेतांबर जैनों की एक वृहज्जाति प्रोसवाल नामक भी विधमान है । इस जाति को राजस्थान में महाजन कहते हैं । जम्मू काश्मीर जनपदों में जो महाजन लोग विद्यमान
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