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________________ १३२ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म (२-३) सतिसर और काश्मीरपुर दो नाम१-सतिसरासारं शारिका शैल भूषितम् । २-श्री जैन नगरादस्माकानोपवन-विभूषितम् ।।२।। ३- अस्ति त्रिभुवन्नारण्यमुत्तमं भूषणं भुवे । श्री काश्मीरपुर- रम्यं नानोपवन शोभितम् ॥३॥ सतिसर में-१-शारिका पर्वत, २-जैननगर तथा ३-काश्मीरपुर का उल्लेख पाया है । द्वीप की तरह इसका शिखर दिखलाई देता है । इसके जल की गहराई ३००-४०० फुट तक थी। (इतिहासकारों का मत है कि जैननगर का नाम मुसलमान जेनुलहक्क के नाम से पड़ा)। २.हिमालय के प्राचीन नाम- (१) हिमवान, (२) हिमाचल, (३) हिमवन्त, (४) हैमवन्त (५) हिमशैल, (६) पर्वतराज, (७) गिरिराज तथा (८) गिराधिराज। काश्मीर के इतिहास पर लिखी गई पन्द्रह राजतरंगिणियों का उल्लेख मुसलमान जेनुल मादि ने किया है। परन्तु उन में से प्राज एक भी उपलब्ध नहीं है और न ही उनके नामों का पता है। पर आज तो मात्र चार राजतर गिनियाँ उपलब्ध हैं जो उनके बाद की लिखी हुई हैं। (१) कवि कल्हण कृत राजतरंगिणी (ईस्वी सन् ११४८-४६) (२) जोनराज कृत राजतरंगिणी (ई० स० १४४६-५६); (३)श्रीधर कृत राजतरंगिणी (ई० स० १४५६-८६); (४) शुक कृत राजतरंगिणी (ई० स० १५१३-१४)। इन चारों नतन राजतरंगिणियों में से प्रथम राजतरंगिणी के लेखक कवि कल्हण ने इस तरंगिणी की रचना का उद्देश्य बतलाते हुए कहा है कि दृष्टं दृष्टं नृपोवितं बद्धवा प्रमयमि यूषाम् । प्रकिाल भवेर्वार्ता तत्प्रबन्धेषु पूर्यत् ॥१:६।। वाक्ष्यं कियदिदं तस्मादस्मिन् भूतार्थ वर्णने । सर्व प्रकारं स्खलिते ये जिनाय ममाधमः ॥१:१०॥ अर्थात्-जिन लेखकों ने अपने समय के नपों का इतिहास लिपिबद्ध किया है उनके पश्चात् अर्वाचीन काल के लिए और क्या बात बाकी रह जाती है जो आप के इस नूतन प्रबन्ध में पूर्वकारों से विशेष है ? इस बात के समाधान में कवि कहता है कि-यह प्रबन्ध लिखने की मेरी योजना यह है कि मैं पूर्ण सर्वागीन क्रमबद्ध इतिहास उपस्थित करूं जो पुरातन इतिहास की स्खलना से विशृंखलित है। (१:९-१०) सारांश यह है कि यदि कल्हण के शब्दों में कहा जावे तो यह राजतरंगिणी काश्मीर के इतिहास को क्रमबद्ध प्रामाणिक रूप से उपस्थित करती है । अतः हम भी इसी के आधार पर यहाँ काश्मीर के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे । १-जैनों की मान्यता है कि सरस्वती का मूलस्थान काश्मीर में है, उसका उल्लेख राजतरंगिणियों में इस प्रकार है मेदगिरेः शृगे गंगोद मेव शुचौ स्वयम् । सरोऽन्त श्यते यं च हंस-रूपो सरस्वती ।। (कम्हण राजतरंगिणी-३५) अर्थात्-गंगा स्रोत से पावन मेदगिरि के शिखर पर स्थित सरोवर में देवी सरस्वती हंस रूप में दिखलाई देती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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