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________________ १३० मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म ३-कुरुदेश का राजकुमार सुतसोम ।' ४--मिथिला का राजकुमार कुमार विदेह ।' ५-इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) का राजकुमार धनञ्जय ।' ६-कम्पलक देश का राजकुमार ।। ७-मिथिला का राजकुमार सुरुचि । ८-चन्द्रगुप्त मौर्य का मंत्री चाणक्य ब्राह्मण । इस तरह अन्य भी अनेक राजकुमारों आदि के निर्देश जातकों में पाये जाते हैं । (७) भारत के अन्य राजकुमार भी जिनकी संख्या उस समय १०१ थी, उसी प्राचार्य से शिक्षा पा रहे थे । शिक्षा पा चुकने के बाद वे अपने राज्यों में वापिस जाकर वहाँ के शासक राजा बनते थे। इससे स्पष्ट है कि एक प्राचार्य के पास १०१ राजकुमार शिक्षा पाते थे। जिसे हम राजकुमार कालेज कह सकते हैं। तक्षशिला नगर का स्थान-पाकिस्तान में रावलपिंडी से २० मील की दूरी पर जो सरायकाला का रेलवे स्टेशन है उससे थोड़ी दूरी पर उत्तर पूर्व की ओर १२ मील के घेरे में तक्षशिला के खंडहर और स्तूप फैले हुए हैं । यह नगर जिस स्थान पर बसा हुआ था पहाड़ की एक बहुत रमणीक तराई है। इस तराई में हरो नदी तथा अन्य छोटी-छोटी नदियाँ बहती हैं जिससे यह स्थान और भी हराभरा और रमणीय हो गया है। इसके चारों ओर पहाड़ों की शृंखलाये हैं, उत्तर-पूर्व की ओर हज़ारा और मरी के बरफ़ वाले पहाड़ हैं तथा दक्षिण पश्चिम में मर्गला की घाटी और कई छोटे-छोटे पहाड़ हैं। इसके अलावा यह नगर उस सड़क पर बसा हुअा था जो भारत से सीधी मध्य एशिया (Central Asia) तथा पश्चिम एशिया (Western Asia) को जाती है। इसी सड़क के माध्यम से मध्य तथा पश्चिमी एशिया और भारत के बीच प्राचीन समय में व्यापार होता था। इन्हीं सब बातों के कारण कोई आश्चर्य नहीं है कि यह नगर प्राचीन समय में इतने महत्व का समझा जाता रहा है। एस्पिन नाम का एक ग्रीक इतिहास लेखक ईस्वी सन की दूसरी शताब्दी में हो गया है। उसने भारतवर्ष और सिकन्दर के इतिहास की सामग्री इस वर्णन में खूब दी है । वह लिखता है कि सिकन्दर के समय में तक्षशिला बहुत बड़ा और ऐश्वर्यशाली नगर था। इसमें सन्देह नहीं कि सिन्धू और जेहलम नदियों के बीच जितने नगर थे उनमें यह नगर सबसे बड़ा और सबसे अधिक महत्व का समझा जाता था। ईसा की सातवीं शताब्दी में चीनी बौद्ध यात्री हुएनसाँग भारत में भ्रमण के लिए आया था। वह भी तक्षशिला की उपजाऊ भूमि तथा हरियाली की प्रशंसा कर गया है। ___ खण्डहर और स्तूप-जैसा कि ऊपर कहा गया है कि तक्षशिला के खण्डहर तथा स्तूप १२ मील के घेरे में फैले हुए हैं। पुरातत्त्व विभाग ने इसकी खुदाई करवाई है । यह इस परिणाम पर 1-Abid Vol I p. 146. 2-Abid Vol II p. 27. 3-Abid Vol II p. 251 4-Ahid Vol III p. 52. 5-Abid Vol IV p. 198. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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