SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तुति अहिंसा और शान्ति कोरा दर्शन ही नहीं है, वह एक आचरण है। वह एक शाश्वत धर्म है,वह मात्र संकटकालीन स्थिति से उबरने का उपाय नहीं है। अहिंसा में असीम शक्ति है । उस शक्ति का जागरण तभी संभव हो सकता है,जब उसका बोध हो,शोध हो,प्रशिक्षण हो और प्रयोग हो। इस दिशा में हमारी यात्रा भीतर से शुरु हो। आज अहिंसा विवशता या बाध्यता की स्थिति में मान्य हो रही है इसलिए उसके बारे में अनुसंधान,प्रशिक्षण और प्रयोग कहां हो रहे हैं? विभिन्न राष्ट्रों की सरकारें युद्ध के लिए प्रशिक्षण और शोध की व्यवस्था करती हैं वैसे अहिंसा, अहिंसक समाज रचना और विश्व शान्ति के लिए प्रशिक्षण और शोध की व्यवस्था नहीं करती। क्या इस एकपक्षीय व्यवस्था से हिंसा को प्रोत्साहन और अहिंसा के मूल पर कुठाराघात नहीं हो रहा है। हमारा सामूहिक संकल्प हो कि सरकारें युद्ध के प्रशिक्षण की भांति अहिंसा के प्रशिक्षण का दायित्व भी अपने ऊपर लें। संयुक्त राष्ट्र संघ जो विश्व शान्ति की व्यवस्था के प्रति उत्तरदायी है उसका भी सहज दायित्व बनता है कि वह अहिंसा के प्रशिक्षण की व्यापक व्यवस्था का संचालन करे। आज हिंसा का प्रशिक्षण अर्जित आदत का निर्माण कर रहा है। यह वर्तमान युग की सबसे खतरनाक स्थिति है । अणुव्रत आंदोलन इस दिशा में गतिशील है कि व्यक्ति में हिंसा एक आदत न बने । पूरे समाज को बदलने के लिए बड़े पैमाने पर अहिंसा प्रशिक्षण की आवश्यकता है। अहिंसा का प्रशिक्षण शिक्षा का अनिवार्य अंग हो तभी व्यापक प्रशिक्षण की कल्पना की जा सकती है। उपरोक्त विचारों के साथ गणाधिपति श्री तुलसी ने विश्व-शान्ति के लिए त्रिसूत्री कार्यक्रम की अपेक्षा को प्रस्तुत किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003163
Book TitleVishwashanti aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy