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अहिंसा का प्रशिक्षण अहिंसा के प्रशिक्षण की व्यवस्था आवश्यक है। सीमित प्रशिक्षण के द्वारा हम बड़ा परिवर्तन करना चाहें, यह संभव नहीं होगा। अहिंसा का प्रशिक्षण शिक्षा का एक अनिवार्य अंग हो तभी व्यापक प्रशिक्षण की कल्पना की जा सकती है। अभिभावक, अध्यापक और विद्यार्थी-यह त्रिकोण इसके साथ जुड़े । अहिंसा के प्रशिक्षण का यह त्रिकोणात्मक अभियान अहिंसक समाज रचना की दिशा में एक सफल चरण विन्यास हो सकता है। हमने इसके लिए जीवनविज्ञान का कार्यक्रम शुरु किया है। वह वर्तमान में प्रचलित शिक्षा की एक पूरक पद्धति है। उसमें मानसिक, भावात्मक प्रशिक्षण और
आंतरिक प्रयोग की व्यवस्था है । व्यक्तित्व रूपान्तरण के लिए हमने प्रेक्षाध्यान की पद्धति का विकास किया है। वह हृदय-परिवर्तन की प्रयोगात्मक पद्धति है । वह प्रयोग सामाजिक और आर्थिक स्तर पर नहीं किंतु वैयक्तिक स्तर पर किया जाता है उससे सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक,सभी प्रणालियां प्रभावित होती हैं। जीवनविज्ञान में अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान-दोनों के समन्वित रूप में प्रशिक्षण और प्रयोग समायोजित किए गए हैं। हमारी दृष्टि में अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान और जीवनविज्ञान-यह त्रिपदी अहिंसा अथवा हृदयपरिवर्तन के प्रशिक्षण की सुव्यवस्थित पद्धति है। इसके द्वारा प्रशिक्षित व्यक्ति सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्र में अहिंसा का व्यावहारिक प्रयोग करने में अधिक सफल हो सकता है ।
विभिन्न राष्ट्रों की सरकारें युद्ध के लिए प्रशिक्षण और शोध की व्यवस्था करती हैं। वैसे अहिंसा, अहिंसक समाज रचना और विश्व शान्ति के लिए प्रशिक्षण और शोध की व्यवस्था नहीं करतीं। क्या इस एकपक्षीय व्यवस्था से हिंसा को प्रोत्साहन और अहिंसा के मूल पर कुठाराघात नहीं हो रहा है ? हमारा सामूहिक संकल्प हो कि सरकारें युद्ध के प्रशिक्षण की भांति अहिंसा के प्रशिक्षण का दायित्व भी अपने पर लें। सैनिकों एवं सेना के अधिकारियो को सामरिक प्रशिक्षण के साथ-साथ अहिंसा का प्रशिक्षण भी दें। इस अवस्था में युद्ध अथवा हिंसा एक अनिवार्यता हो सकती है,किन्तु उन्माद और आवेश की उपज नहीं हो सकती । हिंसा के साथ अहिंसा का विवेक हो तो अनावश्यक हिंसा और हिंसा के अतिवाद से बहुत बचा जा सकता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ, जो विश्व शांति की व्यवस्था के प्रति उत्तरदायी है,उसका भी सहज दायित्व बनता है कि वह अहिंसा के प्रशिक्षण की व्यापक व्यवस्था का संचालन करे।
. आश्चर्य है कि विश्व भर में शिक्षा और प्रशिक्षण के हजारों-हजारों संस्थान
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