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________________ अहिंसा का प्रशिक्षण अहिंसा मेरा जन्मजात संस्कार है। जैन परिवार में जन्म लेने का अर्थ अहिंसा के वातावरण में पलना-पुसना । संयोगवश ग्यारह वर्ष की अवस्था में मैं जैन मुनि बना । जैन मुनि का पहला महाव्रत है- अहिंसा । व्यक्तिगत रूप में उसकी साधना शुरू हो गई । अध्ययन के साथ-साथ अहिंसा को और अधिक गहराई से पढ़ने का अवसर ला। मैंने अनुभव किया— अहिंसा का वर्तमान समस्याओं के सन्दर्भ मे प्रयोग होना - गणाधिपति तुलसी ५. वहां हिंसा की शक्ति समाप्त होती है, वहां अहिंसा की शक्ति ही काम आती है । इस युद्ध का तनाव, समझौता और संधि से समाप्त होता है। द्वितीय महायुद्ध समाप्त हो चुका था । उसका प्रभाव ध्वंसावशेष के रूप में विद्यमान था । उस समय लंदन (२२ जून १९४५) में विश्व धर्म सम्मेलन की आयोजना की गई। उसमें मेरा " अशान्त विश्व को शान्ति का संदेश " शीर्षक से संदेश पढ़ा गया । अहिंसा की दिशा में व्यापक संपर्क का यह पहला चरण विन्यास था। मेरे मन में विश्व शान्ति के लिए एक तड़प सदा बनी रही। अनावश्यक हिंसा, शस्त्रीकरण और युद्ध की समाप्ति कैसे हो, इस दिशा में चिन्तन चलता रहा । शान्ति निकेतन में आयोजित विश्व शान्ति सम्मेलन के अवसर पर मेरे एक संदेश का वाचन हुआ, उसके कुछ सूत्र ये हैं ० • समाज रचना का मूल आधार सत्य और अहिंसा रहे । ० अहिंसा दार्शनिक तत्त्व के रूप में नहीं, आचरण के रूप में स्वीकार की जाए । अहिंसा और अपरिग्रह का वातावरण बनाया जाए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003163
Book TitleVishwashanti aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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