SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरी हिंसा पराजित । मैं आपको कष्ट दे रहा था और आप मुझ पर करुणा का सुधासिंचन कर रहे थे । मैं आपको वेदना के सागर में निमज्जित कर रहा था और आप यह सोच रहे थे कि संगम मुझे निमित्त बनाकर हिंसा के सागर में डूबने का प्रयत्न कर रहा है । आपके मन में एक क्षण के लिए भी मुझ पर क्रोध नहीं आया।" धृति वह तत्त्व है जो व्यक्ति के मन में सदाचार के प्रति आस्था को दृढ़ करती है। सामान्यत: व्यक्ति कोई भी अच्छा काम करता है और उसे शीघ्र ही उसका सुफल नहीं मिलता है तो वह दुराचार की और प्रवृत हो जाता है। किन्तु जिस व्यक्ति में धेर्य होता है वह परिणाम के प्रति अनातुर रहता हुआ सत्क्रिया करता रहता है। साधना का सूत्र-प्रतीक्षा आज के युग की सबसे बड़ी कठिनाई है कि आदमी प्रतीक्षा करना नहीं चाहता-वह तत्काल फल चाहता है। आज ही बीज बोया और आज उसका फल मिल जाए-यह उसका प्रयत्न रहता है। यह अधैर्य, प्रतीक्षा न करने की वृत्ति साधना का विघ्न है। साधना का सूत्र है-प्रतीक्षा करना, जल्दबाजी न करना । जल्दबाजी करने में अनेक समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। कच्चा फल खट्टा होता है, तो कच्ची साधना अच्छी कैसे होगी? हमें प्रतीक्षा करनी होगी कि फल पक जाए । खट्टा न रहे । पकने के लिए प्रतीक्षा करनी होती है वह एक ही क्षण में घटित नहीं होता । साधना के मार्ग में जल्दबाजी खतरनाक होती है। धीमे-धीमे अभ्यास को बढ़ाना चाहिए, अन्यथा शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है। उसे संभाल पाना कठिन हो जाता है । धैर्य के साथ चलें। अधैर्य की स्थिति उत्पन्न न होने दें। अ-. मन की भूमिका प्राप्त करने के लिए उतावले न हों । मन की भूमिका जब समुचित ढंग से चलती रहेगी, आलम्बन शुद्ध होगा और मन की एक दिशागामिता बनी रहेगी तो एक दिन वह लक्ष्य तक पहुंच पाएगा । अमन हो पाएगा । हम सत्य की खोज के लिए निकल पड़े हैं । हमें सत्य को खोजते जाना है । बहुत सारे सत्यों को खोजना है। विधायक चिन्तन भक्त ने कहा- 'भगवन् ! दूसरे लोग उपकार करने वाले का ध्यान नहीं रखते जितना कि आप अपने अपकार करने वाले का रखते है । उपकारी का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003162
Book TitleJivan Vigyana aur Jain Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy