________________
अनुप्रेक्षा
79
'आत्मशुद्धि का जहां प्रश्न है, सम्प्रदाय का मोह न हो, - 'यह घोष अंत:प्रेरणा का प्रतिफलन हैं । समन्वय का प्रयत्न और साम्प्रदायिक एकता के पांच सूत्र उसी प्रेरणा के आधार पर प्रस्तुत किए गए हैं। अणुव्रत आंदोलन, जो कि सब धर्मों का समन्वय है, उसी भावना का विराट् रूप है ।
हमें जो सिद्धांत प्राप्त हो, उनके प्रति हमारा पूर्ण विश्वास हो, किन्तु हम यह कभी न मानें कि संपूर्ण सत्य हमें उपलब्ध हो गया है। आज भी नया सत्य, नया तथ्य या नया ज्ञान हमें उपलब्ध होता हो, तो उसे स्वीकार करने का साहस होना चाहिए । इसी आधार पर हम परिवर्तन में विश्वास करें। प्रवाहपाती होकर हमें कुछ बदलना नहीं चाहिए और रूढ़िग्रस्त होकर आवश्यक परिवर्तन से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए।
6. धैर्य की अनुप्रेक्षा
प्रयोग-विधि
1. महाप्राण ध्वनि
2. कायोत्सर्ग
3. पीले रंगा का श्वास लें । अनुभव करें
श्वास के साथ पीले रंग के परमाणु भीतर प्रवेश कर रहे हैं। 3 मिनट
4. प्राण- केन्द्र पर पीले रंगा का ध्यान करें ।
3 मिनट
2 मिनट
5 मिनट
5. प्राण- केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर अनुप्रेक्षा करें'मैं परिस्थिति को झेलने की क्षमता को विकसित करूंगा । उससे पराजित नहीं होऊंगा' - इस शब्दावाली का नौ बार उच्चारण करें फिर इसका नौ बार मानसिक जप करें। 6. अनुचिंतन करें
जिसमें उतावलापन होता है, जो उचित समय की प्रतिक्षा करना नहीं जानता, उसका मन अधिक चंचल हो जाता है। अधिक चंचलता मन को अस्त-व्यस्त बना देती है । इससे स्मृति और एकाग्रता की शक्ति कम होती है । इसलिए धैर्य रखना बहुत जरुरी है । मैं धैर्य रखने का अभ्यास करूंगा ।
7. महाप्राण ध्वसनि के साथ ध्यान सम्पन्न करें ।
10 मिनट 2 मिनट
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
5 मिनट
www.jainelibrary.org