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________________ अनुप्रेक्षा 71 को शक्ति का पर्यायवाची मान लिया है। युवक अर्थात् शक्ति और शक्ति अर्थात् युवक । युवक शक्ति का प्रतिनिधि होता है । यह प्रतिनिधित्व तो उसने स्वीकार कर लिया किन्तु उसका ठीक नियोजन नहीं किया । इस नियोजन की गड़बड़ी के कारण आज देश में बहुत सारी समस्याएं पैदा हो गयी हैं। आचार्य श्री तुलसी का उदाहरण युवकों के सामने होना चाहिए । जब आचार्य श्री की अवस्था मात्र बाईस वर्ष की थी, उस समय आपने एक शक्तिशाली संघ का नेतृत्व अपने कंधों पर लिया और उसका विकास किया शक्ति का उपयोग रचनात्मक कामों में किया । आचार्य श्री का प्रारम्भिक सूत्र था - 'हमें ध्वंस I पर की ओर अपनी शक्ति नहीं लगानी है।' दुनिया में सबका विरोध होता है । कोई ऐसा नहीं है कि जिसका विरोध नहीं होता । सूर्य अकारण प्रकाश देता है, उसकी भी आलोचना होती है। सूर्य का भी विरोध होता है। हवा अकारण हमें लाभाविन्त करती है, प्राण देती है, जीवन देती है, पर उसका भी विरोध होता है । जो व्यक्ति अपनी शक्ति का इतना निर्माणात्मक और रचनात्मक कार्यों में नियोजन कर सकता है, वह सचमुच विकास कर लेता है । यदि आज यह बात हमारे अध्यापकों की समझ में आ जाए, विद्यार्थियों की समझ में आ जाए, मजदूरों की समझ में आ जाए तो मैं समझता हूं कि जो रचनात्मक निष्पत्तियां हमारे सामने आनी चाहिए किन्तु नहीं आ रही हैं, उनका एक समाधान हो सकता है। आज देश की स्थिति क्या है ? आज के युवकों की स्थिति क्या है ? शक्ति का नियोजन करने के लिए हमें कुछेक बातों पर ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक होगा। पहली बात है कर्मण्यता । शक्ति तो है किन्तु कर्मण्यता नहीं है । आज हिन्दुस्तान जिस बीमारी से ग्रस्त है, वह है अकर्मण्यता और मुफ्तखोरी का पाठ उसने शताब्दियों से पढ़ लिया है। यह बीमारी उसकी रग-रग में जमी हुई हैं। भगवान् की दया हो, कोई काम करना न पड़े, ऐसा मन हो गया है। लेने के लिए उसका इतना मानस बन गया है कि कोई काम करना न पड़े, श्रम करना न पड़ें और काम बन जाए तो भगवान् की कृपा है, धर्म की कृपा है। श्रम करना पड़ जाए तो हम मानते हैं कि भगवान् की कृपा कम है। धर्म की कृपा कम है । यह जो अकर्मण्यता की बीमारी है, अपने कर्म पर, अपने पुरुषार्थ पर विश्वास न करने की बीमारी है, हिन्दुस्तान के युवक को इस बीमारी से मुक्त होना चाहिए । अगर हमारे युवक इस बीमारी से मुक्त हो जाते हैं तो समझना चाहिए कि सबसे बड़ी समस्या का समाधान हो गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003162
Book TitleJivan Vigyana aur Jain Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size4 MB
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