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________________ अनुप्रेक्षा कर्त्तव्य परायणता कर्त्तव्य परायणता की सबसे पहली शर्त है-निष्ठा और जागरूकता । जिस व्यक्ति की कर्त्तव्य पालन में निष्ठा है, वह प्रमाद, अन्याय और मुफ्तखोरी जैसा कोई काम नहीं कर सकता । कर्त्तव्य - भावना की कमी का कारण राष्ट्रीय प्रेम की न्यूनता भी है। अपने राष्ट्र के प्रति उदात्त प्रेम होगा तो प्रमाद जैसी स्थिति को पनपने का अवकाश ही नहीं मिलेगा। परिवार और अपने चरित्र - बल के लिए भी व्यक्ति के कर्त्तव्य हैं | श्रमिक अणुव्रत के ये विधान कर्त्तव्य के पति जागरूक रहने के लिए ही हैं। जिस श्रमिक का जीवन संस्कारी होता है, जिसमें किसी प्रकार का दुर्व्यसन नहीं होता, जो जुआ नहीं खेलता, बाल-विवाह, मृत्युभोज जैसी सामाजिक कुरीतियों को प्रश्रय नहीं देता, अपने अर्जित अर्थ का सुरा, सिनेमा, सिगरेट आदि आदतों की पूर्ति के लिए अपव्यय नहीं करता, श्रम से जी नहीं चुराता और अपने दायित्व के प्रति जागरूक रहता है वह श्रमिक कभी कर्त्तव्य-च्युत नहीं हो सकता । श्रमिक जीवन एक प्रशस्त जीवन-पद्धति ही नहीं, देश की बहुत बड़ी शक्ति है। श्रमिक अणुव्रत की धाराएं इस शक्ति को चारित्रिक सम्पदा से परिमंडित कर कर्त्तव्यपालन की अपूर्व क्षमता दे सकती हैं । 4. स्वावलम्बन की अनुप्रेक्षा - प्रयोग-विधि 1. महाप्राण ध्वनि 2. लयबद्ध दीर्घश्वास 3. भस्त्रिका 4. कायोत्सर्ग 65 2 मिनट 5 मिनट 5 मिनट 5 मिनट 5. संकल्प- 'मैं स्वावलम्बी रहूंगा। मैं अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए अपनी शक्ति का उपयोग करूंगा।' Jain Education International अभ्यास पद्धति - शान्ति - केन्द्र पर चित्त को केन्द्रित करें। फिर इस संकल्प की 15 मिनट तक पुनरावृत्ति की जाए - 5 मिनट उच्चारण पूर्वक, 5 मिनट मंद उच्चारण पूर्वक और 5 मिनट मानसिक अनुचिंतन के रूप में । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003162
Book TitleJivan Vigyana aur Jain Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size4 MB
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