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________________ अनुप्रेक्षा शिक्षित करने का प्रयास करें। जब ज्ञान जागता है तब हीन-भावना समाप्त हो जाती है, स्वयं की शक्ति का भान होता है और कुछ करने की बात प्राप्त होती है । स्त्रियां यदि स्वाध्याय-मंडल और ध्यान-मण्डल का संचालन करना प्रारम्भ करती है तो अशिक्षा का वातावरण कुछ अंशों में समाप्त हो जाता है। स्त्रियों को सबसे पहले अपने आपको शक्तिशाली बनाना होगा। जो शक्तिशाली नहीं होता उसकी कोई सहायता नहीं करता। देव भी उसी की सकायता करता है जो पुरुषार्थी और पराक्रमी होता है। स्त्रियां अपने कर्त्तव्यों की लौ को प्रज्वलित करें और ज्ञान बढ़ाएं। कुछ ही वर्षों में ऐसा परिर्वन आएगा कि लोग नारी की दुर्बलताओं को भूलकर यह सोचने के लिए बाध्य होंगे की नारी की शक्ति का कैसे उपयोग किया जाए ? विचारों में नयापन पुरानेपन का मोह हमारे भीतर नहीं होना चाहिए। आज हम बीसवींइक्कीसवीं शताब्दी में जी रहे हैं। हमारे शास्त्र, हमारे ग्रंथ, हमारे नियम दो हजार, चार हजार और पांच हजार वर्ष पहले बनाये गए थे। देश का परिवर्तन हुआ है, काल का परिर्वन हुआ है, हमारी सोचने की क्षमताएं बढ़ी हैं,वैज्ञानिक उपलब्धियां हमारे सामने आई हैं, नये ग्रंथ हमारे सामने आए हैं। उन सबकी ओर आंख मूंदकर, केवल अतीत की ओर झांक कर हम सब बातों का निर्णय लेना चाहें तो वह. एकांगिता सचमुच दरिद्र बना देने वाली है। हिन्दुस्तान जो कई बातों में पिछडा रहता है, इसका कारण मैं यह मानता हूं कि उसने विज्ञान के क्षेत्र में और उपलब्धियों के क्षेत्र में पहल करने की बात बन्द कर दी। महाभारत से पहले का जमाना हिन्दुस्तान की उपलब्धियों का जमाना था। नये-नये चिंतन के आयामों को उद्घटित करने का जमाना था और उसमें बहुत कुछ हुआ था। पर इन दो हजार वर्षों में तो मुझे लगता है कि द्वार बिल्कुल ही बन्द हो गया है । हिन्दुस्तान बार-बार पराजित हुआ। बाहर के आने वाले लोगों से पराजित हुआ। क्यों हुआ? क्या यहां लड़ने वाले नहीं थे ? क्या पराक्रमी योद्धा नहीं थे ? पराक्रम की दृष्टि से हिन्दुस्तान की तुलना में दुनिया में बहुत कम योद्धा मिलेंगे। प्राणों की आहुति देने वाले, प्राणों को न्यौछावर करने वाले और प्राणों का विसर्जन करने वाले यहां बहुत मिलेंगे। किन्तु उनका तकनीक विकसित नहीं था। बाहरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003162
Book TitleJivan Vigyana aur Jain Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size4 MB
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