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जीवन विज्ञान - जैन विद्या आज देखिए, युवक का मतलब एक 'क्रांति' से जुड़ गया। आवेश और युवक एक दूसरे के पर्याय जैसे हो गए। एक बार मैं डा. डी. एस. कोठारी से बात कर रहा था मैंने पूछा, 'आज के विश्वविद्यालयों में इतने उग्र आंदोलन हो रहे हैं तो क्या आप इनसे सहमत हैं ?' उन्होंने कहा, 'देखिए महाराज ! मैं मानता हूं कि आज व्यापारी वर्ग में कोई क्षमता नहीं है। राज्य कर्मचारियों में तो है ही नहीं कि वे बुराई का प्रतिकार कर सकें। आज जितना अन्याय चल रहा है, उसके प्रति एकमात्र प्रतिकार की शक्ति किसी में है तो वह है युवक और विद्यार्थी में । विद्यार्थी की क्षमता को और उसकी क्रांति करने की शक्ति को कुचलना नहीं है, रोकना नहीं है। मैं युवक के इस पक्ष का समर्थक हूं । किन्तु इतना जरूर है कि आवेश के स्थान पर थोड़ा संतुलन, थोड़ा विचार और थोड़ा विवेक होना चाहिए।' युवकों की शक्ति को रोकना नहीं है । शक्ति का उपयोग करना है और शक्ति का उपयोग होना भी चाहिए । इण्डोनेशिया में जो कुछ परिर्वन हुआ, उसकी पृष्ठभूमि में युवक वर्ग था। विद्यार्थियों ने सारे शासन को पलट दिया। आज ऐसा कहीं भी हो सकता है। यदि आज हिन्दुस्तान के करोड़ों-करोड़ों विद्यार्थी बात को पकड़ लें तो शायद हिन्दुस्तान का भी काया कल्प हो सकता है । किन्तु मुझे लगता है कि शक्ति का सही नियोजन नहीं हो रहा है। शक्ति का सही दिशा में नियोजन हो और उसके साथ विवेक और संतुलन हो जाए और सही मार्ग दर्शन हो तो उसकी सम्भावनाएं बढ़ सकती हैं। आज निर्माण की अपेक्षा है । किन्तु आप निश्चित मानिए कि निर्माण तब तक नहीं होगा जब तक कि चारित्र का विकास नहीं होगा । आज हिन्दुस्तान की सारी कठिनाई, सारी गरीबी इस बात पर पल रही है कि यहां भ्रष्टाचार बहुत है। पुल बनता है तो एक ही वर्षा में टूट जाता है। बांध बनता है तो एक ही वर्षा में उसमें दरारें पड़ जाती हैं। मकान बनता है तो काम में आने से पहले ही ढह जाता है । यह सारा इसलिए होता है कि सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार खुलकर चल रहा है। आज धन के प्रति इतना व्यपाक मोह है कि जो होना चाहिए उसका उलटा परिणाम आ रहा है।
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आज के युवक को यथार्थ की भूमिका का अनुभव करना चाहिए । पहली बात है कि केवल बातों पर भरोसा नहीं, कार्य-क्षमता में विश्वास होना चाहिए। यह मैं अनुभव करता हूं, आज भी हिन्दुस्तानी युवक में बातें ज्यादा हैं, काम कम है। आप दूसरे देशों की तुलना में देखिए। एक व्यक्ति बता रहा था कि अमरीकी लोग सप्ताह में दो दिन तो पूरी छूट्टी मनाते हैं, किंतु पांच दिन वे निष्ठापूर्वक तन्मयता से काम करते हैं। जितना काम वे पांच दिन में करते हैं, उतना
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