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________________ अनुप्रेक्षा स्वाध्याय और मनन (अनुप्रेक्षा-अभ्यास के बाद स्वाध्याय और मनन आवश्यक है।) सत्य का सार्वभौम स्वरूप .अध्यात्म का एक महान सूत्र है- समूह में रहते हुए भी एकांत का अनुभव करना। साधना करने वाले व्यक्ति के लिए यह परम वांछनीय है। जिस व्यक्ति ने अकेलेपन का अनुभव किया, उसने सचमुच अपनी चेतना को बदल दिया, अपने व्यक्तित्व का रूपान्तरण कर लिया। रूस के महान् साधक गुर्जिएफ तीन महीने का प्रयोग करवाते थे कि एक हॉल में 10, 20, 30 आदमी एक साथ रहें। साथ में खाएं-पीएं-जीएं, पर निन्तर 'मैं अकेला हूं' इस बात का अनुभव करते रहें। इस एकत्व-अनुप्रेक्षा के सत्र को उन्होंने काम लिया। सत्य पर किसी का अधिकार नहीं होता सत्य सार्वभोम होता है। हिन्दुस्तान का व्यक्ति हो, रूस का व्यक्ति हो, चाहे दुनिया के किसी कोने में जन्म लेने वाला व्यक्ति हो, जो अध्यात्म की भूमिका में जाता है, जो सत्य की खोज में जाता है, उसे वही बात मिलती है जो यहां मिलती है। सत्य की उपलब्धि में देश और काल की सारी सीमाएं समाप्त हो जाती है। एकांतवास का एक अर्थ है- एकांत में रहने का अभ्यास, एकांत का प्रयोग। दूसरा अर्थ है-एकत्व का अनुभव। एकांतवास का तीसरा अर्थ हैप्रतिस्रोत-गमन की क्षमता। भीड़ में चलना, स्रोत के साथ-साथ चलना-यह गमन का एक प्रकार है। दूसरा प्रकार है-भीड़ से विमुख होकर चलना, अनुसरण को छोड़ना, प्रतिस्रोत में चलना। बहुत सहज होता है अनुस्रोत में चलना। स्रोत बह रहा है, कोई भी तिनका आएगा, स्रोत में बह जाएगा। कोई भी चीज आती है, सोत में बह जाती है। स्रोत के प्रतिकूल चलना, बहुत कठिन साधना है। भीड़तंत्र आज का ही नहीं है। मनुष्य का समाज बना तब से चल रहा है। जब से मनुष्य ने व्यक्ति से अपने आपको समाज में ढाला तो अनुसरण की वृत्ति विकसित हुई। ___जब समाज को हम इस दृष्टि से देखते हैं कि सब लोग ऐसा करते हैं और यदि मैं ऐसा न करूं तो क्या फर्क पड़ेगा अथवा सब ऐसा नहीं करते हैं और मैं ऐसा करूं तो क्या फर्क पड़ेगा दोनों बातें हमें सत्य से दूर ले जाती हैं। एकत्व का अनुभव करने वाला व्यक्ति, भीड़तन्त्र को न मानने वाला व्यक्ति, अनुसरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003162
Book TitleJivan Vigyana aur Jain Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size4 MB
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