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(ङ) प्रेक्षाध्यान
1. लेश्याध्यान प्रत्येक मनुष्य के शरीर के चारों ओर एक आभामंडल होता है। उसके रंग भाव-परिवर्तन के साथ बदलते रहते हैं। भाव और आभामंडल का गहरा संबंध है। हम भाव-शुद्धि के द्वारा आभामंडल को विशुद्ध बना सकते हैं। और आभामंडल की विशुद्धि से भाव की विशुद्धि को जाना जा सकता है। आनन्द केन्द्र पर हरे रंग का ध्यान
अनुभव करें-अपने चारों ओर पन्ने की भांति चमकते हुए हरे रंग का प्रकाश फैल रहा है। हरे रंग के परमाण फैल रहे हैं। अब इस हरे रंग का श्वास लें। अनुभव करें-प्रत्येक श्वास के साथ हरे रंग के परमाणु शरीर के भीतर प्रवेश कर रहे हैं। चित्त को आनन्द केन्द्र पर केन्द्रित करें। वहां पर चमकते हुए हरे रंग का ध्यान करें।
- (कुछ समय बाद) अनुभव करें- आनन्द केन्द्र से हरे रंग के परमाणु निकलकर शरीर के चारों ओर फैल रहे हैं। पूरा आभामंडल हरे रंग के परमाणुओं से भर रहा है। उन्हें देखें, अनुभव करें। ...... अनुभव करें, भावधारा निर्मल हो । रही है, भावधारा निर्मल हो रही है, भावधारा निर्मल हो रही है। विशुद्धि केन्द्र पर नीले रंग का ध्यान
अनुभव करें-अपने चारों ओर मयूर की गर्दन की भांति चमकते हुए नीले रंग का प्रकाश फैल रहा है। नीले रंग के परमाणु फैल रहे हैं। अब इस नीले रंग का श्वास लें। अनुभव करें-प्रत्येक श्वास के साथ नीले रंग के परमाणु शरीर के भीतर प्रवेश कर रहे हैं। चित्त को विशुद्धि केन्द्र पर केन्द्रित करें। वहां पर चमकते हुए नीले रंग का ध्यान करें।
(कुछ समय बाद) अनुभव करें-विशुद्धि केन्द्र से नीले रंग के परमाणु निकलकर शरीर के चारों ओर फैल रहे हैं। पूरा आभामंडल नीले रंग के परमाणुओं
1- यह जानकारी पहले प्रयोग के समय या प्रशिक्षण के समय दें।
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