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Salt
तीसरी क्रिया-कान के लिए कानों में तर्जनी (अंगुठे के पास वाली अंगुली) डालकर दाएं बाएं घुमाएं। कानों के बाहरी भाग को चारों तरफ से मालिश कर ऊपर-नीचे खीचें। हथेलियों से दोनों कानों को दबाकर अन्तर-ध्वनि सुनें। श्वास-प्रश्वास सामान्य रहेगा। । लाभ-कान संपूर्ण शरीर का प्रतिनिधि है। कान की इस क्रिया से अनेक रोग शान्त होते हैं। कान बहना ठीक होता है, सुनने की शक्ति का विकास होता है। आलस्य दूर होता है विवेक स्फुरित होता है।
चौथी क्रिया- मुख एवं स्वरयन्त्र के लिए
मुख में श्वास को पूरा भरें। जिससे कपोल (गाल) फूल जाएं। दो-तीन बार इस क्रिया को दोहराएं। दोनों तरफ से दांतों
और जबड़ों को परस्पर सटाकर दबाएं। मुख को खोलें दाहिने हाथ की तीन अंगुलियों को दांतों के बीच से भीतर गले की ओर ले जाएं। आ ........ आ ...... आ ....... की ध्वनि करें।
लाभ-कपोलों पर झुर्रियां नहीं उभरती। दांत की बीमारियां दूर होती है, आवाज साफ होती है।
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