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जीवन विज्ञान-जैन विद्या यौगिक शारीरिक क्रियाओं से सम्पूर्ण शरीर के सन्धिस्थलों में लचीलापन एवं कर्मजा शक्ति का विकास होता है। मांसपेशियों में स्फूर्ति तथा स्नायु-संस्थान में सक्रियता बढ़ती है। रक्त-संचार सुव्यवस्थित होने लगता है। मन प्रसन्न और चित्त प्रशान्त होने लगता है। जिससे प्रज्ञा प्रगट होती है। स्वस्थे चित्त बुद्धयः प्रस्फुरन्तिस्वस्थ चित्त में प्रज्ञा प्रगट होती है। यौगिक शारीरिक क्रिया
मन, श्वास और काया के संयोग से जो क्रियाएं बनती हैं वे यौगिक क्रियाएं हैं। योग से उत्पन्न क्रियाओं को भी यौगिक क्रिया कहा गया है। 'योग' शब्द युनूंन्र् योगे से बना है जिसका तात्पर्य है जोड़ना, संधित होना। योग का दूसरा अर्थ युजङ् समाधौ धातु से बनता है जिसका अर्थ है समाधान करना। यौगिक क्रियाएं शरीर, श्वास और मन का समन्वय और समाधान प्रस्तुत करती हैं । यौगिक क्रियाओं से शरीर, श्वास और मन का संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है।
. शरीर के अवयवों को सक्रिय और प्राणवान बनाने के लिए तेरह यौगिक क्रियाओं का प्रणयन किया गया है। इनमें से मेरुदण्ड और पेट व श्वास की क्रियाओं का अभ्यास आप कर चुके हैं। मेरुदण्ड को लचीला बनाने के लिए उपयोगी एवं स्वभाव-परिवर्तन के लिए मेरुदण्ड की आठ क्रियाएं हैं। पेट और श्वास की दस क्रियाएं जहां पाचन-तंत्र को ठीक करती है वहां श्वास-प्रश्वास को दीर्घ एवं सम्यक् बनाती है। प्रेक्षाध्यान में यौगिक क्रियाओं से शरीर के प्रत्येक अवयव को साधना के अनुरूप बनाने का प्रयत्न किया गया है। जिससे साधक प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों में सरलता से प्रवेश कर सके। यौगिक शारीरिक क्रियाओं की प्रविधि
___ यौगिक शारीरिक क्रिया की इस प्रविधि को प्रयोग में लाने के लिए कोई विशेष स्थान एवं व्यवस्था की अपेक्षा नहीं होती। केवल स्वच्छ और हवादार स्थान पर्याप्त होता है। इस पूरे प्रयोग को एक साथ करने में लगभग 15 मिनट लगते हैं। समयाभाव में इस प्रयोग को खण्डों में विभाजित किया जा सकता है। यह अभ्यास मस्तक से लेकर पैर तक विभिन्न अवयवों पर क्रमशः ग्यारह क्रियाओं में पूर्ण होता है।
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