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धर्म और शासन
सम्यग्
विवक्षितः ।
४. धर्मशासनयोर्भेदोऽभेदः धर्मो वैयक्तिकोऽपि स्यात्, शासनं सामुदायिकम् ॥
आलोक प्रज्ञा का
भन्ते ! क्या धर्म और शासन में कोई भेद है ?
शिष्य ! उनमें भेद भी है और साथ-साथ अभेद भी । भेद यह है धर्म वैयक्तिक भी होता है और शासन सामुदायिक |
संगठन के सूत्र
५. विचारः सम्यगाचारः, व्यवस्थेति त्रयो मता । गणस्य श्रेयसे तेन, मतिस्तत्र निविश्यताम् ॥
संगठन के तीन आधार हैं - सम्यग् आचार, सम्यग् विचार और सम्यग् व्यवस्था । ये तीनों संघ के लिए श्रेयस् हैं, इसलिए मतिमान् व्यक्ति को अपनी मति उनमें निविष्ट करनी चाहिए ।
पहली शताब्दी का तेरापंथ
धारणा
परिवर्तिता ।
६. जागरूकत्वमुन्नीतं, प्रोत्साहिता मनोभावाः, संधेनैकात्मतां गताः ॥
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तेरापंथ की पहली शताब्दी जागरूकता का उन्नयन, धारणाओं में बदलाव और संघ के साथ एकात्मकता करने वाले मनोभावों को प्रोत्साहित करने की थी ।
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