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________________ ६० धर्म और शासन सम्यग् विवक्षितः । ४. धर्मशासनयोर्भेदोऽभेदः धर्मो वैयक्तिकोऽपि स्यात्, शासनं सामुदायिकम् ॥ आलोक प्रज्ञा का भन्ते ! क्या धर्म और शासन में कोई भेद है ? शिष्य ! उनमें भेद भी है और साथ-साथ अभेद भी । भेद यह है धर्म वैयक्तिक भी होता है और शासन सामुदायिक | संगठन के सूत्र ५. विचारः सम्यगाचारः, व्यवस्थेति त्रयो मता । गणस्य श्रेयसे तेन, मतिस्तत्र निविश्यताम् ॥ संगठन के तीन आधार हैं - सम्यग् आचार, सम्यग् विचार और सम्यग् व्यवस्था । ये तीनों संघ के लिए श्रेयस् हैं, इसलिए मतिमान् व्यक्ति को अपनी मति उनमें निविष्ट करनी चाहिए । पहली शताब्दी का तेरापंथ धारणा परिवर्तिता । ६. जागरूकत्वमुन्नीतं, प्रोत्साहिता मनोभावाः, संधेनैकात्मतां गताः ॥ Jain Education International तेरापंथ की पहली शताब्दी जागरूकता का उन्नयन, धारणाओं में बदलाव और संघ के साथ एकात्मकता करने वाले मनोभावों को प्रोत्साहित करने की थी । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003161
Book TitleAlok Pragna ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size3 MB
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