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आलोक प्रज्ञा का
भंते ! सत्य के कितने प्रकार हैं ?
वत्स ! सत्य के दो प्रकार हैं-अस्तित्व सत्य और वाणीगत सत्य । वाणी के द्वारा जो प्रतिपाद्य होता है वह सापेक्ष होता है, निरपेक्ष नहीं होता।
सुख के प्रकार
१३३. अनुभूतौ सुखं तस्य, हेतवः पुद्गला अमी।
सुखं निर्हेतुकं शश्वद्, आत्मभावे प्रतिष्ठितम् ।। आर्य ! सुख के कितने प्रकार हैं ?
वत्स ! उसके दो प्रकार हैं--पौद्गलिक और आत्मिक । पोद्गलिक सुख की अनुभूति में पुद्गल हेतु बनते हैं। आत्मिक सुख निर्हेतुक होता है । वह शाश्वत रहता है।
सुख किसमें ?
१३४. कस्याऽस्ति सुखमाहारे, परस्याऽभोजने सुखम् ।
सुखस्य चास्ति नानात्वं, भोगे त्यागे तथैव च ॥
कोई भोजन करने में सुख मानता है, कोई भोजन छोड़ने में सुख मानता है । सुख की अनुभूति के नाना प्रकार हैं । कहीं सुख भोग से जुड़ा होता है और कहीं त्याग से ।
आत्मकर्तृत्ववाद
१३५. कर्तृत्वं नात्मनश्चास्ति, कर्मणः किं प्रयोजनम् ।
कर्तृत्वमात्मनश्चेत् स्यात्, कर्म तत्सार्थकं भवेत् ।।
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