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आलोक प्रज्ञा का
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भंते ! श्रुतज्ञान की परम्परा चिरंजीवी कैसे रह सकती है?
वत्स ! श्रुतज्ञान की परम्परा अविच्छिन्न और चिरकालिक रहे, यह आचार्य का दायित्व है। वे उसके लिए वैसा चिन्तन और वैसा कार्य करते हैं।
श्रुत क्यों ?
१३०. श्रुतेन जायते पुंसां, व्युद्ग्रहस्य विमोचनम् ।
ज्ञानं यथार्थभावानां, तेनाऽध्ययनमाश्रितम् ।।
गुरुदेव ! श्रुत से क्या प्राप्त होता है ?
भद्र ! श्रुत से कलह का विमोचन होता है, यथार्थभावों का ज्ञान होता है, इसलिए श्रुत का आलम्बन लिया गया है ।
वचन की सम्पदा
१३१. आदेयं वचनं पुण्यं, मधुरं वचनं तथा ।
अनिश्चितमसंदिग्धं, एषा वचनसंपदा ।
आर्यवर ! वचन की सम्पदा क्या है ?
वत्स ! आदेय वचन बोलना, पवित्र वचन बोलना, मधुर वचन बोलना, अनिश्चित विषय में अनिश्चित बोलना, निश्चित विषय में असं दिग्ध बोलना-यह सब वचन की संपदा है ।
सत्य के दो प्रकार
१३२. अस्तिसत् वाग्गतं सत्यं, तत्सापेक्षमुदीरितम् ।
वाचा यत् प्रतिपाद्यं स्यात्, निरपेक्ष भवेन्न तत् ।।
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