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आलोक प्रज्ञा का
दोहरी समस्या है । इसका समाधान क्या हो सकता है ?
वत्स ! इन दोनों का समाधान है-जीभ का संयम । जीभ का संयम होने पर वासना का संयम सहज ही निष्पन्न हो जाता है।
आचार-शास्त्र
६३. अशस्त्रं काममाचारः, शस्त्रं भावो विमोहितः ।
शस्त्रं चाऽविरतिस्तस्मात्, दूरमाचारवान् मतः।।
आचार का तात्पर्य है-शस्त्ररहित होना। शस्त्र केवल तलवार, बन्दुक आदि ही नहीं हैं, भाव या अविरति भी शस्त्र हैं । वे चेतना को मूढ बनाते हैं। इसलिए जो व्यक्ति अविरति या भाव-शस्त्र से दूर रहता है, वह आचारवान होता है। ६४. परमश्रेयसः प्राप्तिः, उद्देश्यं तस्य सम्मतम् ।
आत्मैव परमं श्रेयः, आचारेण स लभ्यते ॥ किसी ने महान् दार्शनिक सुकरात से पूछा-नीतिशास्त्र का उद्देश्य क्या है ? सुकरात ने कहा-परम शुभ को पाना उसका उद्देश्य है । वह परम शुभ है-आत्मा । वह प्राप्त होता है आचार से।
नियामक कौन ?
६५. आदर्शो वीतरागोऽस्ति, संयमस्तस्य साधनम् ।
संयमस्य प्रवक्तारः, सन्ति विश्वनियामकाः ।। भंते ! विश्व का नियामक कौन होता है ?
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