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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प का परिवर्तन नहीं होता तब तक इस सामाजिक मूल्य का विकास नहीं हो सकता।
___ अध्यात्म के आचार्यों ने इस भावना- परिवर्तन के लिए कुछ शब्द दिए–'आत्मौपम्य' 'आत्मतुला, 'सब जीव समान', सब जीव अपनी आत्मा के जैसे हैं। ये शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण हैं, गंभीर अर्थ की सूचना देने वाले हैं। इस भावना के अभाव में जातीय विद्वेष पनपा, सांप्रदायिक विद्वेष पनपा और राज्य का सीमागत विद्वेष पनपा। यदि यह भावना विकसित होती कि सब जीव समान हैं, मेरी आत्मा के जैसी ही है दूसरे की आत्मा, जैसी सुख-दुःख की अनूभूति मुझे होती है, वैसी ही सामने वाले व्यक्ति को होती है, तो यह जातीय और साम्प्रदायिक आक्रोश- विद्वेष कभी पनप नहीं पाता।
___ वर्तमान स्थिति क्या है? एक काला आदमी है और दूसरा गोरा आदमी है। आदमी आदमी है, केवल चमड़ी और रंग का अन्तर है। किन्तु गोरा आदमी अपने आपको श्रेष्ठ मान रहा है और काले आदमी को नीच मान रहा है। एक सवर्ण है, दूसरा असवर्ण है। सवर्ण अपने को श्रेष्ठ मान रहा है और असवर्ण को नीच मान रहा है। यह रंग के आधार पर विद्वेष, जाति के आधार पर विद्वेष, धारणाओं के आधार पर विद्वेष है। एक नाजी यहूदी को हीन मानता है और यहूदी नाजी को पागल कुत्ता जैसा मानता है। यह जातिगत विद्वेष है। विचारधारा के आधार पर भी यह विद्वेष पनपता है। एक संप्रदाय वाला दूसरे संप्रदाय वाले को हीन मान रहा है और अपने आपको उच्च प्रामाणित कर रहा हे । ये सारे जो विद्वेष पनपे हैं, वे इस आधार पर पनपे हैं कि अहिंसा का जो एक सूत्र था मानव जाति की एकता का, उसे भुला दिया गया। जब हम सामाजिक मूल्यों के हास की चर्चा करते हैं तो इस बात परं हमें फिर विचार करना होगा कि कहां भूल हुई है? उस भूल को पकड़ना होगा। जहां दर्द है वहां अंगुली टिके तब तो कोई उपचार की बात हो सकती है। दर्द कहीं और उपचार कहीं किया जाए तो बहुत सार्थकता नहीं होती।
___ 'मनुष्य जाति एक है'-इस मूल्य की प्रतिष्ठा हमारी अनेक समस्याओं का एक समाधान है। कुछ लोगों ने इस दिशा में प्रयत्न
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