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________________ ६८ / नए मंदिर : नए पुजारी समिति के सदस्यों ने सेठजी का आशय समझ लिया। अतः विचार करने का बहाना बनाकर उठ आए। बाहर आकर बात करने लगे- सेठ हमारे साथ सौदेबाजी कर रहा है। शायद वह पैसा तो दे देगा, पर उसके बल पर हमें खरीदना चाहता है। यदि भगवान का मन्दिर पैसे वाले का मन्दिर बन गया तो हमारे लिए इससे बढ़कर लज्जा की बात और क्या होगी? पर पैसे के बिना मन्दिर कैसे बनेगा? एक सदस्य ने पूछा। समिति के अर्थमंत्री ने जो एक्साइज आफिस में हेडक्लर्क भी थे, कहा - आप में दम है, तो पैसे के बिना कोई कार्य नहीं रुक सकता। हाँ, यह बात ठीक है कि पैसा आखिर वहीं से पायेगा, जहां वह है। अतः जिसका जितना सामर्थ्य है, वह दिल खोलकर पैसा दे। जो पैसा न दे सके, वह श्रमदान करे। उसके बाद भी पैसे की आवश्यकता रहेगी, तो मैं लाऊंगा। सदस्य---- आप कहां से लायेंगे ? अर्थमंत्री--कहीं से लाऊं, पर इसकी जिम्मेदारी मैं लेता हूँ। आप जानते हैं, हमारे हाथों से रोज़ लाखों रुपये निकलते हैं। अत: मुझे पैसा बड़ा नहीं लगता, पर उस घमंडी बनिये को यह दिखा देना है कि उसके बिना कोई काम रुका नहीं रह सकता ! धर्म के साथ सौदेबाजी नहीं चल सकती। सदस्य--तो फिर आप कोई छोटा देहरा खड़ा कर दो। थोड़े पैसे में काम चल जाएगा। बड़ी योजना के लिए बड़े पैसे की आवश्यकता होगी। अर्थमंत्री-तब फिर हमारी बात ही क्या रही ? सदस्य-~-बात ही रहने का सवाल है, तब सेठ की न रही आपकी रह गई। इसमें फर्क क्या पड़ता है ? यह तो धर्म का काम है। इसमें बात वात का कोई सवाल नहीं है। अर्थमंत्री- इसीलिए तो मैं कहता हूँ, मुझे नाम की जरूरत नहीं। भगवान का मन्दिर किसी व्यक्ति-विशेष का मन्दिर नहीं बनना चाहिए। पैसे की भी व्यवस्था मैं क्या करूंगा, भगवान अपने-आप करेंगे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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