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________________ भूमिका बहुत वर्षों पहले जबकि अणुव्रत आन्दोलन शुरू हुआ ही था मैंने अणुव्रत भावना पर एक कहानी लिखी थी। मैं उसे लेकर खुशी-खुशी आचार्य श्री तुलसी के पास गया । अपने व्यस्त समय में भी आचार्य श्री ने न केवल उसे देखा-सुना ही अपितु मुझे पुरस्कृत भी किया। यह भी कहा हमारे धर्मसंघ में इस विद्या में लिखने में तूने पहल की है, इससे मैं प्रसन्न हूं। मैं नहीं जानता वह कहानी कितनी सशक्त थी पर इतना तय है कि आचार्य श्री के इस वात्सल्य भाव से मुझे गहरी प्रेरणा प्राप्त हुई। लेखन की दिशा में बढ़ने का संभवत: वह मेरा पहला चरणन्यास था। उसके बाद साहित्य की अनेक धाराओं में मुझे बहने का मौका मिला। मुझे ऐसा तो लगता है कि मैं किसी एक विद्या में पूरी तरह नहीं उत्तर पाया फिर भी आचार्य श्री का आशीर्वाद मेरे साथ रहा है। मेरी कहानियों की प्रस्तुत पुस्तक 'नये मंदिर: नये पुजारी, उसी आशीर्वाद का प्रतिफल है।। जैन आचार्यों ने कथा साहित्य पर बहुत गहरा और व्यापक कार्य किया है। विशेषज्ञ लोग मानते हैं कि मानवीय उत्कर्ष की दृष्टि से वह बहुत मूल्यवान् है । पुराने जमाने में चूंकि कहानी सुनने का ही विषय थी इसलिए उसमें घटनात्मक मोड़ और चमत्कार आवश्यक था । आज कहानी सुनने की अपेक्षा पढ़ने का विषय ज्यादा बन गई है इसलिए उसमें मनोवैज्ञानिकता ज्यादा आ गई है। मैंने इन दोनों के बीच से अपनी राह बनाने की कोशिश की है । अणुव्रत, युवादृष्टि, कथालोक, जैनभारती, जैन जगत् आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं में मेरी कहानियां छपती रही हैं। अपने मित्र मुनिश्री मधुरकर जी की प्रेरणा से मैंने इसे पुस्तक के रूप में संग्रहीत कर दिया है। आशा है मेरे समान धर्मा पाठक न केवल इससे संतुष्ट ही होंगे अपितु लाभान्वित भी होंगे। ४ जुलाई मुनि सुखलाल अणुव्रत-विहार नई दिल्ली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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