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ध्यान की दिशा बदलने के लिए
आकर्षण पैसे का
एक आदमी बड़ा लोभी था। केवल पैसा ही उसके लिए सब कुछ था। किसी ने सूचना दी-'आग लग गई।'
उसने पूछा-'कहां लगी है आग ।' 'अरे ! तुम्हारा मकान जल रहा है, जल्दी जाओ।' 'कोई चिन्ता की बात नहीं है।' 'तुम्हारा मकान जल जाएगा, रक्षा करो।' 'मकान का बीमा किया हुआ है, कोई चिंता की बात नहीं है।' ‘पर भीतर तुम्हारी पत्नी है। उसकी तो रक्षा करो।' 'कोई चिन्ता नहीं है, उसका भी बीमा किया हुआ है।'
जब सारी रुचि पैसे के प्रति हो जाती है तब न कोई मकान की चिन्ता होती है और न पत्नी की चिन्ता सताती है। केवल पैसे की चिन्ता सताती है।
बहुत सारे परिवारों में झगड़े चलते हैं। पिता-पुत्र में, भाई-भाई में और पति-पत्नी में वैमनस्य हो जाता है। कोर्ट में मुकदमे चलते हैं। एक कारण बनता है धन-संपत्ति का बंटवारा। अमुक ने इतना कम दिया, अमुक ने इतना ज्यादा ले लिया, इस बात को लेकर इतना तनाव हो जाता है कि एक-दूसरे से आंखें भी नहीं मिला पाते । पैसे के आकर्षण में उलझा आदमी यह नहीं सोचता कि यह मेरा बड़ा भाई है। क्या फर्क पड़ा, यदि इसने दस-बीस हजार ज्यादा ले लिए। रुपये इधर रहे या उधर रह गए, एक ही तो बात है। यह प्रश्न ही नहीं आता। सम्बन्ध गौण हो जाते हैं, पैसा मुख्य बन जाता है। इसका हेतु है आकर्षण। जिसके प्रति सबसे ज्यादा आकर्षण हो गया, वही काम्य रहेगा, शेष अकाम्य बन जाएगा। विश्लेषण करें रुचि का
___ ध्यान करने वालों को सबसे पहले अपनी रुचि का विश्लेषण करना चाहिए, अपने दर्शन का विश्लेषण करना चाहिए। मेरा दृष्टिकोण क्या है? दर्शन क्या है? आकर्षण का केन्द्र क्या है? जब तक इसका विश्लेषण नहीं करेंगे, ध्यान की बहुत सार्थकता नहीं होगी। ध्यान की सार्थकता तभी संभव है जब अपने दर्शन का, रुचि अथवा आकर्षण का यथार्थ विश्लेषण किया जाए। जो लोग ध्यान करने आते हैं, उन्हें दस-बीस मिनट एकांत में, अकेले में आत्म-निरीक्षण करना चाहिए। उन क्षणों में अपने दर्शन का और अपनी रुचि का विश्लेषण करना चाहिए। आकर्षण का केन्द्र पदार्थ है और प्रेक्षा का ध्यान करने आए हैं तो आत्मा को देखने में सफलता नहीं मिलेगी, बार-बार वही पदार्थ दिखेगा। देखना चाहेंगे आत्मा को और दिखेगा पदार्थ । आकर्षण में बदलाव के लिए
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