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________________ तब होता है ध्यान का जन्म खाने को रोटी नहीं मिली। वह बहुत भूखा था। पूनम का चांद उगा। उसने गोल-गोल देखा तो तत्काल ध्यान चला गया, सोचा-रोटी उगी है। चांद में भी रोटी का आरोपण हो गया क्योंकि उसका ध्यान रोटी पर टिका हुआ था। चांद उसके लिए दृश्य नहीं था। उसके लिए दृश्य थी रोटी। जो गोल चीज देखता, तत्काल उसमें रोटी का आरोपण कर लेता। प्रत्येक व्यक्ति का ध्यान आकृष्ट होता है रुचि के आधार पर। रुचि एक प्रकार की नहीं होती। जिसकी जैसी रुचि होती है, उसका ध्यान उसी में अटक जाता है। शिविर की आयोजना क्यों? हमें यह सचाई स्वीकार करनी चाहिए कि हर व्यक्ति ध्यान करता है। ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं है, जो ध्यान न करे। प्रश्न हो सकता है-फिर ध्यान के शिविर की आयोजना क्यों? सब ध्यान कर ही रहे हैं तो उसकी आवश्यकता क्या है? उसकी आवश्यकता है ध्यान की दिशा को बदलने के लिए । जब तक ध्यान की दिशा नहीं बदलेगी तब तक ध्यान आगे बढ़ाने वाला नहीं होगा, एक सीमा में बंधा हुआ होगा। बाजार में एक नई पुस्तक आई बायोलॉजी की। स्टॉल पर एक ज्योतिषी ने उस पुस्तक को देखा और सोचा-यह मेरे कोई काम की नहीं है। एक दर्शनशास्त्री ने उसे देखा और कहा-यह निकम्मी है, मेरे लिए आवश्यक नहीं है। एक बायो-लॉजिस्ट ने उसे देखा, तत्काल ध्यान उस पर केन्द्रित हो गया। उसने पुस्तक उठाई और खरीद ली। दो ने पुस्तक को छोड़ दिया, एक ने खरीद लिया। कारण क्या है। कारण है रुचि। जिस विषय में जिसकी रुचि है, वह उसके काम की है और जिसकी रुचि नहीं है, उसके लिए निकम्मी है। ___ एक बार शहर में प्रख्यात नर्तकी आई। शहर के लोगों ने नृत्य का आयोजन किया। उसका काफी प्रचार किया, विज्ञापन किया। काफी भीड़ इकट्ठी हो गई। एक बूढ़ा आदमी जाने में सक्षम नहीं था, वह खाट पर पड़ा था इसलिए जा नहीं सका। उसके मन में बड़ी छटपटाहट थी-मैं भी जाता और देखता तो कितना अच्छा होता। नृत्य का आयोजन सम्पन्न हुआ। उसने एक युवक से पूछा-बोलो, कैसा रहा आयोजन? उसने कहा-बहुत सुन्दर रहा, मजा आ गया। आयोजन स्थल से एक छोटा बच्चा बाहर आया। उससे पूछा-बोलो कैसा लगा? उसने कहा-मैं तो समझ ही नहीं सका । लोगों ने एक स्त्री को खड़ा कर दिया। वह तो ऐसे अंगों को मरोड़ रही थी, मानो उसके शरीर में गहरी पीड़ा हो। यह रुचि की विचित्रता का द्योतक है। राजा देखता रह गया आगम साहित्य की एक कहानी है। एक बार जंगल में राजा भटक गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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