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ध्येय का साक्षात्कार
गई, ध्येय का रूप स्थिर हो जाएगा। ऐसा लगेगा-जैसे सामने ही कुछ आलेखित है, सामने ही कोई चित्र बना दिया है। ध्येय सामने नहीं है, दूर है किन्तु सामने उसका चित्र स्पष्ट हो जाता है। प्रेक्षाध्यान का एक प्रयोग है-लेश्याध्यान । कहा जाता है-ज्योतिकेन्द्र पर चन्द्रमा का ध्यान करें। दर्शनकेन्द्र पर बाल सूर्य का ध्यान करें। यह चंद्र और सूर्य हमारा ध्येय बन गया। सूर्य को देखना है दर्शनकेन्द्र पर और चंद्र को देखना है ज्योतिकेन्द्र पर। पहले एक कल्पना की, ध्येय बना लिया फिर उस कल्पना का विकास करें और चलते-चलते गहरी एकाग्रता प्राप्त कर लें तो ज्योतिकेन्द्र पर चंद्रमा का साक्षात्कार हो जाएगा, दर्शनकेन्द्र पर बाल सूर्य का साक्षात्कार हो जाएगा, आलेखित चित्र जैसा स्पष्ट दिखने लग जाएगा।
यह एक कसौटी है, जिसके आधार पर माना जा सकता है-ध्यान परिपक्व हुआ है, युवा बना है। जब तक ऐसा न हो तब तक मानना चाहिए-अभी ध्यान बचपन में ही चल रहा है । जब तक यह स्थिति नहीं आती तब तक भ्रांतियां बनी रहती हैं और जब इस स्थिति का अनुभव होता है, भ्रांतियां टूटने लग जाती हैं। जनक का सपना
ब्रह्मविद्या के ज्ञाता महाराज जनक सो रहे थे। सोते-सोते नींद में सपना आया। जनक ने देखा-राज्य में विद्रोह हो गया है। राज्य दूसरों ने हथिया लिया है। जनक वहां से निकल पड़े। राज्य से बाहर चले गये। कुछ भी पास नहीं रहा, सब कुछ लुट गया, राज्य छूट गया, सम्पदा भी छूट गई। अकेले ही जंगल में भटक रहे हैं। भूख लग गई। खाने को पास में कुछ भी नहीं है। विचित्र अवस्था हो गई। कुछ आगे चले। एक गांव में पहुंचे। वहां भिक्षुओं को कुछ दिया जा रहा था। जनक भिक्षुओं की पंगत में बैठ गए। एक पत्तल में खिचड़ी उनके सामने रख दी गई। जैसे ही जनक खिचड़ी खाने की तैयारी करने लगे, दूसरी दिशा से लड़ती-लड़ती दो गायें आईं और पत्तल को नीचे गिरा दिया। खिचड़ी नीचे रेत में गिर गई। अब क्या करे? बड़ी चिन्ता हो गई। खिचड़ी मुश्किल से मिली और वह भी चली गई। जनक इस चिन्ता में उलझते चले गए। सपना चलता रहा।
__ प्रात:काल का समय । मंगलपाठकों ने मंगल ध्वनि की। जनक की नींद खुल गई। सपना पूरा हो गया। राजाओं के लिए मंगलपाठक नियुक्त होते थे। वे राजा को जगाने के लिए मंगल ध्वनियां गाते थे। वे मंगलपाठक उस समय गा रहे थे-महाराज जनक की जय-जयकार होगी। जनक आंख मसलते हुए खड़े हो गए। राजा के मन मे प्रश्न उठा-वह सही था या यह सही है? सच कौनसा है? यह सच है या वह सच है? इस प्रश्न में उलझे राजा राजसभा में गए। अनेक विद्वान सभासदों से यह प्रश्न पूछा पर
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