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________________ ध्यान का परिवार २७ है। आसन के द्वारा भूख और प्यास पर भी विजय पाई जा सकती है। ऐसा नहीं है कि भूख नहीं लगेगी। किन्तु भूख लगी तो उसे सहन करने की शक्ति प्रकट हो जाएगी । प्यास लगी तो उसे सहन करने की शक्ति प्रकट हो जाएगी। बड़े-बड़े साधक लम्बे समय तक तपस्या करते थे । एक दिन के उपवास से लेकर छह-छह मास तक की तपस्या, बारह-बारह मास तक की तपस्या करते थे । बाहुबली ने बारह महीने तक तपोयोग की साधना की । महावीर ने छह महीने तक पानी भी नहीं लिया । यह कैसे संभव बना? भगवान महावीर आसनों का बहुत प्रयोग करते थे । आसनों के प्रयोग से शरीर को इतना साध लिया, कायसिद्धि इतनी हो गई कि भूख-प्यास आदि द्वन्द्वों को सहन करने की क्षमता भी उनमें प्रकट हो गई। आसन के द्वारा मानसिक और भावात्मक द्वन्द्वों पर भी विजय पाई जा सकती है। एक आसन है शशांक आसन । जिसे बहुत गुस्सा आता है, उस व्यक्ति को शशांक आसन का प्रयोग कराया जाए तो उसका गुस्सा कम हो जाता है । वासना आदि अनेक वृत्तियां प्रकट होती हैं नाभि के पास । एड्रीनल ग्लैण्ड - वृक्क ग्रंथि उसमें सहायक बनती है। उसके प्रभाव से वृत्तियां जागृत हो जाती हैं। यह वही ग्रन्थि है, जिसके लिए 'फाईट और फ्लाईट' 'प्रहार करो या भागो' की बात कही जा सकती है । शशांक आसन और योगमुद्रा के द्वारा उस पर नियंत्रण किया जा सकता है । प्रेक्षाध्यान के साधक वंदना की मुद्रा में बैठकर 'वंदे सच्चं' का उच्चारण करते हुए नीचे झुकते हैं। इस आसन से एड्रीनल ग्लैण्ड पर कंट्रोल होता है, वृत्तियों पर नियंत्रण होता है । आसन का प्रयोग केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए नहीं है। ध्यान के लिए भी बहुत आवश्यक है आसनों का प्रयोग । आसन न करें और केवल ध्यान करें तो ध्यान का पूरा परिवार नहीं बनेगा । हमने एक कमरा बनाकर खड़ा कर दिया, न छत है, न दरवाजा है तो मकान का पूरा उपयोग नहीं हो सकता । ध्यान के संदर्भ में भी यही बात है । उसके लिए आसन का प्रयोग भी जरूरी है। उससे द्वन्द्वों का शमन होता है, व्यक्ति में लचीलापन आता है और बालक की मनोवृत्ति का जन्म होता है I दो प्रकार की मनोवृत्तियां एक है बालक की मनोवृत्ति और दूसरी है प्रौढ़ की मनोवृत्ति। दो बच्चे लड़ पड़े। बच्चों ने एक दूसरे को पीटा। एक बच्चा मां-बाप के पास गया, बोला- उसने मुझे पीट दिया। दूसरे बच्चे ने भी अपने माता-पिता से वही शिकायत कर दी। मां-बाप भी गुस्से में आ गए। वे भी आपस में लड़ पड़े । बच्चों के आधार पर लड़ना मूर्खता ही है किन्तु आवेश में लोग यह मूर्खता भी करते हैं । दूसरा दिन हुआ। बच्चों की लड़ाई कितनी देर की होती है। बच्चे तत्काल भूल जाते हैं । बालक की मनोवृत्ति है भुला देना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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